Monday, December 16



हम देश की बेटी का बलिदान न भूलें।
ज़िंदा न रहे एक भी हैवान न भूलें। ।
जिस आन के लिए वो दरिंदों से भिड़ गई ,
जब तक रहे ये जान वही आन न भूलें। ।

(देश की बहादुर बिटिया निर्भया को समर्पित)  

Tuesday, December 10


ख़ुदा की बड़ी मेहरबानी हुई है। 
शुरू ख़ूबसूरत कहानी हुई है।।

हैं साँसें ग़ज़ल , धड़कनें हैं तरन्नुम ,
मुलाक़ात बेशक सुहानी हुई है।। 

न सैलाब आए लबों पे दुआ है ,
फ़सल खेत में कुछ सयानी हुई है।। 

जो तुम मिल गए ,मन्नतें झूमती हैं ,
हर इक आरज़ू जाफ़रानी हुई है।। 

तो बाहर सही दोस्ताना सभी से ,
अगर घर में बेटी सयानी हुई है।। 

हसीं ख्वाब जैसी लगे ज़िंदगानी ,
गुलाबी हैं दिन,रात धानी हुई है।। 

ये काग़ज़ के टुकड़ों पे चाहत की बातें ,
चलो प्यार की कुछ निशानी हुई है।।  



Saturday, December 7


आप चाहे जिधर जाइए।
ख़ुशबुओं -सा बिखर जाइए।।

चाहतों का समंदर लिए ,
आप दिल में उतर  जाइए।।

कल न रोकेंगे हम आपको ,
आज थोड़ा ठहर  जाइए।।

याद जो कर सके ज़िंदगी ,
कुछ-न- कुछ ऐसा कर जाइए।।

टूट जाएँ न यूँ हारकर ,
हौसला दिल में भर जाइए।।  

लम्हा-लम्हा हो यादों भरा ,
एक जादू-सा कर  जाइए।।  

Friday, December 6

इक शम्मा जब-जब तूफ़ानों से टकराया करती है।।
तेज़ हवा को दूध छठी का याद दिलाया करती है।।

कोशिश लाख करो पर कैसे बाँध सकोगे बतलाओ ,
ख़ुशबू तो ख़ुशबू होती है हर सू छाया करती है।।

हाथ पकड़कर जो हिम्मत का राहों में बढ़ते जाते ,
बाधा चाहे जैसी भी हो , सब हट जाया करती है।।

लगी झलकने आज सफ़ेदी मेरे बालों से पर माँ ,
फिर भी बच्चा समझ हमेशा तू समझाया करती है।।

घर में देखे एक बिचारी बेवा बढ़ती बिटिया को ,
देख ज़माने की नज़रों को वो घबराया करती है।।

दूर गई है माँ  दुनिया से पर उसकी ममता देखो,
बनकर झोंका सिर पर अक्सर हाथ फिराया करती है।।

नहीं बैठने देती चुप वह ,ज़ुबाँ खोल देती उसकी ,
सच का साथ निभाने की जो लत पड़ जाया करती है।।

      


Monday, November 25

वक़्त को पहचानिएगा। ।
दिल का कहना मानिएगा । ।

फिर क़दम पीछे हटें क्यूँ ,
दिल में जब कुछ ठानिएगा । ।

सब भरोसेमंद कब हैं ,
कौन क्या है जानिएगा । ।

मत उलझिए, उलझनों में ,
खाक़ कब तक छानिएगा । ।

आँख में आँसू नहीं हैं ,
दर्द को पहचानिएगा। ।
  

Thursday, November 21

चाहतों की ख़ुशबुओं से तर-बतर हो ज़िंदगी।
हसीं गुलों का , तितलियों का एक घर हो  ज़िंदगी। ।   

कहीं न फ़िक्र हो कोई, न कोई हादसा मिले ,
हर एक की सुकून से यहाँ बसर हो ज़िंदगी। ।

मुहब्बतों की जिससे एक दास्तान बन सके ,
वो बावफ़ा हसीन एक हमसफ़र हो ज़िंदगी। । 

फ़िज़ा में जिसकी प्यार की हो एक नज़्म गूँजती ,
वो जन्नतों -सा पाक -साफ़ इक शहर हो  ज़िंदगी। ।    

वो जिसको सुनके दिल मेरा 'प्रसून' झूमने लगे ,
ख़ुशी बिखेर दे दिलों में वो ख़बर हो  ज़िंदगी। ।                       

Tuesday, November 19

वक़्त फिर धोखा करेगा ,क्या पता था।
बेवफ़ा पल -पल मिलेगा ,क्या पता था। ।  

जो कभी मेरा था, मुझको चाहता था ,
अजनबी बनकर मिलेगा ,क्या पता था। ।

प्यार से महका हुआ था कल तलक जो ,
वो शहर ऐसे जलेगा  ,क्या पता था। ।   

एक अंगुल भर जगह के वास्ते ही ,
ख़ून का दरिया बहेगा  ,क्या पता था। ।   

जी-हुज़ूरी भेड़ की क़िस्मत बनेगी ,
भेड़िया शासन करेगा  ,क्या पता था। ।   

मैं कभी ईमान ले आया था जिसपर ,
वो भरोसे को छलेगा ,क्या पता था। ।             
जिस घर में दीपक चाहत का जलता है। ।
उसमें पल-पल ख़ुशियाँ बनकर पलता है। ।

जो अपनी मेहनत की रोज़ी खाता है ,
वो फिर अपने हाथ कभी न मलता है। ।

वही उजाला दे पाता है दुनिया को ,
जो पहले ख़ुद मोम सरीखा गलता है। ।

उस घर की हर बात में बरकत होती है ,
बीवी से भी जहाँ मशविरा चलता है । ।     

Wednesday, November 6

मेरे घर तू आया कर ना।
आकर फिर मत जाया कर ना। ।

मैं चाहत लफ़्ज़ों में ढालूँ ,
तू थोड़ा मुस्काया  कर ना। ।  

जो होगा देखा जाएगा ,
मत इतना घबराया कर ना। ।

लिख दूँ दिल की हसरत सारी ,
तू ग़ज़लें ये गाया कर ना। ।

आँसू दिल कमज़ोर करेंगे ,
दर्द सभी सह जाया कर ना। ।  

Tuesday, November 5

पत्थर दिल से फूलों की फ़रियाद नहीं करते।
जो पीड़ा दे दिल को ऐसी बात  नहीं करते। ।

ये यादों की इक -इक गठरी खोल के रख देगी ,
तन्हाई में दिल से गुज़री बात नहीं करते। ।

पैसे चाहे थोड़े कम हों लेकिन याद रहे ,
घर आने में इतनी भी तो रात नहीं करते। ।

तन्हा होने पर जो साँसों को चुभती जाए ,
इतनी भी तो चाहत की बरसात नहीं करते। ।

प्यार ख़ुदा हो , चाहत ईमाँ , इश्क़ इबादत हो ,
वरना भूले से इनकी शुरुआत नहीं  करते। ।
 
                

Monday, October 28

कुछ बात तजरुबे की ज़रा जानिए जनाब।
जो कह रहा है वक़्त उसे मानिए जनाब। ।

चेहरों पे हैं सभी के मुखौटे लगे हुवे ,
भीतर छिपा है जो उसे पहचानिए जनाब। ।

जो तेज़ धार में टिके है ,आदमी वही ,
जो रेत बन बहे उसे क्या मानिए जनाब। ।

कीचड़ उछालते  हैं उछालें वो शौक से ,
अपनी हथेलियों को नहीं सानिए जनाब। ।

जो गिड़गिड़ाके माँग ले माफ़ी न कुछ कहे ,
उसपर कभी कमान नहीं तानिए जनाब। ।

जितनी निभाई जा सके उतनी ही घोटिए ,
जो छन सके बस उतनी फ़क़त छानिए जनाब। ।
       

Wednesday, October 23

दिल थोड़ा जज़्बाती रखना।
ख़ुद को मीठी पाती  रखना।।

ग़ज़लों को अशआर मिलेंगे ,
तन्हाई को साथी रखना।।

वक़्त सलामी दे तुझको ,
ऐसा ही क़द-काठी रखना।।

नेक कमाई तो डर कैसा ,
गज़ भर चौड़ी छाती रखना।।

खाने की पहले से सोचो ,
वरना घर मत हाथी रखना।।

ख़ामोशी संग बातें होंगी ,
ख़ुद को ख़ुद का साथी रखना।।           

Tuesday, October 22

दर्द को मिलता नहीं हमदर्द , कैसा वक़्त है।
आँच रिश्तों की हुई है सर्द , कैसा वक़्त है।।

वक़्त के साये में पलकर हो गए इस्पात हम ,
अब कहाँ पुरसा कहाँ का दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

लहलहाकर जो दिलों को  जोड़ते थे कल कभी,
प्यार के पत्ते हुए वो ज़र्द ,कैसा वक़्त है।।

कार भी है क़र्ज़ की औ' क़र्ज़  का ही है मकाँ ,
बन गई है ज़िंदगी इक दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

चीख़ कानों में पड़ी है और सब ख़ामोश हैं ,
सब शिखंडी सबके सब नामर्द , कैसा वक़्त है।।

Monday, October 21

लोहे -पत्थर की बस्ती  में ,फूलों -से जज़्बात कहाँ।
इंसाँ हैं कहलाने भर को ,इंसानों -सी बात कहाँ।।  

वक़्त के साँचे में ढल -ढलकर बदल गई दुनिया सारी ,
अब फूलों-से मुस्काते दिन ,फुलवारी -सी रात  कहाँ।।

खेले चाहे लाख टके के खेल-खिलौनों से  बचपन ,
पर  इनमें माँ की लोरी की मीठी -सी सौगात कहाँ।।  

साँसों -की -साँसों से दूरी ,धड़कन का धड़कन से बैर ,
नाते हों संदल -संदल- से ऐसे अब हालात कहाँ।।  

ठोकर खाने का मतलब है अब औंधे मुँह गिर जाना,
बन जाते थे एक सहारा वो मतवाले हाथ कहाँ।।  

ख़ामोशी करती थी दिल से ,प्यार भरे लफ़्ज़ों में बात ,
दिल से ख़ामोशी सुन लें जो अब ऐसे लम्हात कहाँ।।  

घर के अंदर बैठ अकेला बचपन खेल रहा क्या खेल ,
अब टोली संग गुड्डे -गुड़िया की रचती बारात कहाँ।।
   

Monday, October 14

दिल का दर्द दवा -सा क्यों है ?
पल -पल एक सज़ा -सा क्यों है ?

रिश्तों की गर्माहट सिसके ,
मौसम सर्द हवा -सा क्यों है ?

नादाँ धड़कन पूछ रही है ,
पहला प्यार ख़ुदा-सा क्यों है ?

अनजाना -सा चेहरा है पर ,
उसका बोल दुआ -सा क्यों है ?

जिसने कल चाहा था मुझको ,
वो हमराज़ जुदा -सा क्यों है ?

जो कल था परछाई जैसा ,
वो ही आज ख़फ़ा -सा क्यों है?        

Friday, October 11

किरची -किरची होकर टूटे -फूटे लोग मिले।
सांसों से भी जैसे रूठे -रूठे लोग मिले।।

धन -दौलत को क़द माना तो अंबर जैसे हैं ,   
दिल को  क़द माना तो छोटे -छोटे लोग मिले।।

मुस्कानों की बातें बीते कल का  ख़्वाब हुईं  ,
बस्ती -बस्ती ढूँढा रोते-धोते लोग मिले  ।।

सच्चाई का दावा झूठा , झूठी दुनिया में ,
धड़कन बोलीं -  जब -जब झूठे -झूठे लोग  मिले ।।

सुनकर भी कब सुन पाते हैं , जां  जो प्यारी है ,
डर है कैसा  डर से गूंगे -बहरे  लोग  मिले ।।

बारूदों की गंध लिए चलती है तेज़ हवा ,
इस मौसम में सारे सहमे -सहमे लोग मिले ।।   

Wednesday, October 9

दिखाई देगी जब जन्नत बुजुर्गों की दुआओं में।
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

बड़ों की बात पंचामृत
औ' इनका मन है गंगाजल
बड़ी क़िस्मत से मिलता है 
बड़ों के प्रेम का आँचल

इनको पास में रखिए,रहेंगे आप छाँव में।
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

चलो माता -पिता को
तुलसी -पीपल की तरहा मानें 
उन्हीं को देवगृह मानें  
उन्हीं को देवता मानें  
   
बनेगा घर तभी पावन ,महक होगी दिशाओं में।  
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 
 
बस ऎसे ही घरों में 
जन्नतें डेरा जमाएंगी 
वो सरगम छेड़कर ख़ुशियों के 
मीठे गीत गाएंगी 

 बड़े हैं बरगदों जैसे ,बसी जन्नत है पांवों में।  
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

Monday, October 7

हाल दुनिया का बहुत खस्ता मिलेगा।
दूध से पानी कहाँ सस्ता मिलेगा। ।

ढूँढने निकलोगे बचपन को जहाँ भी ,
पीठ पर भारी लदा बस्ता मिलेगा। ।  

जल्दबाज़ी से मिलेगा क्या बताओ ,
जो मिलेगा यार आहिस्ता मिलेगा । ।

छोड़ दॊगे जब सहारा मांगना तुम ,
देख लेना उस  घड़ी रस्ता मिलेगा । ।

उंगलियों में जो चुभन सहता रहेगा ,
वक़्त से उसको ही गुलदस्ता मिलेगा। ।   
              

Saturday, October 5

तुम बिन जो दुनिया क़िस्मत  की मारी लगती है।
तुमसे मिलकर वो जन्नत -सी प्यारी लगती है । ।

मिलकर लम्हा -लम्हा जी लो ,आँसू ठीक नहीं ,
ऐसा करने से चाहत को गारी लगती है  । ।

तुम आने की बात कहो , फिर कहकर न आओ ,
एक घड़ी भी उस पल कितनी भारी  लगती है  । ।

साँसों में ख़ुशबू भर देती ,धड़कन महकाती ,
ये  भोली मुस्कान हमें फुलवारी लगती है । । 

छप्पर अंधियारे में सीना तान  खड़ा रहता ,
कोठी पर दिन में भी पहरेदारी लगती है । ।

चुपके -चुपके देखें तुमको आँखों में भर लें , 
दिल की  ग़लती है ये लेकिन प्यारी लगती है । ।
   
   

Sunday, September 29

भीड़ में तन्हा खड़े हैं।
हम भी दीवाने बड़े हैं 

छोड़ ज़िद हमको मनाओ,
आज हम  ज़ि पर अड़े हैं 

साथ छूटा था जहाँ पर ,
हम वहाँ अब तक खड़े हैं  

रूठने के बाद तुमसे , 
ख़ुद से हम कितना लड़े हैं   

वक़्त का पहरा पड़ा हैं ,
हम  ख़ज़ाने-सा गड़े हैं   

 मंज़िलें  ख़ुद राह  देंगी ,
सोचकर जब चल पड़े हैं   

Friday, September 27

दर्द को यूँ गुनगुनाओ।
हर हरारत भूल जाओ।।

प्यार आँखों में दिखेगा ,
तुम इसे जितना छिपाओ। ।

आँख थोड़ी भी झुके ना ,
दोस्ती ऐसे निभाओ। ।

याद मैं आऊंगा उतना ,
तुम मुझे जितना भुलाओ। ।
 
बेअसर लगने लगे  ग़म ,
तुम ज़रा -सा मुस्कुराओ  । ।


  

Sunday, September 22

इस बदलती  ज़िंदगी के मायने मिलते नहीं।
जो दिखा दें मन हमें वो आईने मिलते नहीं ॥

ज़िंदगी में मंज़िलों के रूबरू जो ले गए ,
क्या हुआ ढूंढे बहुत वो  रास्ते मिलते नहीं ॥

दौर था जब शाख पर अनगिन थे इसकी घोंसले ,
आज इस सूखे शजर पर घोंसले मिलते नहीं ॥

आसमां से जो सितारे तोड़कर लाए कभी ,
आज क्यों मज़बूत ऐसे हौंसले मिलते नहीं ॥

यूँ बढ़ीं नज़दीकियाँ शहरों की गाँवों से प्रसून ,
हर गली है तंग फैले रास्ते मिलते नहीं ॥ 

Thursday, September 19

सच तो सच है , सच रहने दो।
सच को गूँगा मत होने दो ॥

दर्द पिघलकर बह जाएगा ,
बस कुछ पल मिलकर रोने दो ||

ख़ुद को ख़ुद में ढूंढ़ सकोगे ,
ख़ुद को ख़ुद में गर खोने दो ॥

दिल के खेतों में नफ़रत की ,
फ़सलें बिल्कुल मत बोने दो ॥

नहीं अलग आयत - चौपाई ,
इन दोनों को संग रहने दो ॥

रमुआ का हो या जुम्मन का ,
ख़ून किसी का मत बहने दो ॥ 

Tuesday, September 17

झूठ की तू हिमाकत न कर।
है बड़ी ये शरारत न कर ॥

बाद में तोड़ देगी कमर ,
क़र्ज़ लेकर के दावत न कर ॥

भाई - भाई को जो तोड़  दे,
इतनी ओछी सियासत न कर ॥

दोस्ती कर मिलेगा सुकूँ ,
ज़िंदगी से बग़ावत न कर ॥

इसकी चोरी न रुक पाएगी ,
दिल की इतनी हिफ़ाज़त न कर ॥ 

Sunday, September 15

अगर मुस्कान को गिरवी रखोगे जी न पाओगे।
बड़ी ताक़त मिलेगी जब ज़रा तुम मुस्कुराओगे ॥

यक़ीनन वो मेरा ही नाम होगा देख लेना तुम ,
कभी जब रेत पर यूँ ही कभी उँगली चलाओगे ॥

गिरा दो आज तुम इन बेरहम रस्मों - रिवाजों को ,
पहनकर बेड़ियाँ जब तक चलोगे , लड़खड़ाओगे ॥

अधूरी ही रहेंगी कोशिशें तुम आज़मा लेना ,
बहुत मैं याद आऊँगा , मुझे जितना भुलाओगे ॥

परिंदे चूम लेंगे आसमां के हर सितारे को,
कफ़स को तोड़कर उनको अगर ऊपर उड़ाओगे ॥ 

Wednesday, September 11

हैवान निर्भया के गर रह गए जो ज़िंदा।
तड़पेगा देश जैसे ,घायल हुआ परिंदा ॥

उस रात दरिंदों ने ,
मासूमियत को लूटा
अपनी हवस से अस्मत
औ' रूह को खरोंचा

उसकी तड़प पे वहशी ,
ख़ुश होके नाचते थे
हैवानियत से रूह को ,
टुकड़ों में बाँटते थे

तड़पी  बहुत वो लेकिन पिघला न इक दरिंदा ॥
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

माता -पिता की हसरत ,
परवान चढ़ानी थी
मंज़िल की तरफ़ कल -कल ,
बहता हुआ पानी थी

पंखों से आसमाँ को वो ,
नापना चाहती थी
वो तेज़ हवाओं का ,
रुख़ मोड़ना चाहती थी

अनजान थी यूँ वहशी फाँसेंगे, फेंक फंदा ।
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

Monday, September 9

या तो यूँ घबराना छोड़।
या फिर साथ निभाना छोड़ ॥

पीठ दिखाने की गर सोचे ,
तो आवाज़ उठाना छोड़ ॥

गूँजेगी आवाज़ फ़िज़ाँ में ,
डर - डरकर चिल्लाना छोड़ ॥

तेवर मुट्ठी में लेकर चल ,
ज़ुल्मों से डर जाना छोड़ ॥

जो होगा देखा जाएगा ,
कुछ करके पछताना छोड़ ॥

निभ जाएँ तो ठीक रहेगा ,
वरना क़समें खाना छोड़ ॥

मंज़िल चाहे तो पैरों के ,
छालों को सहलाना छोड़ ॥ 
दिल हारा तो हार मिलेगी।
मौत खड़ी तैयार मिलेगी ॥

गर तूफ़ाँ की गर्दन पकड़ी ,
जर्जर कश्ती पार मिलेगी ॥

फूल गिरा गर तू डाली से ,
हर पत्ती लाचार मिलेगी ॥

ख़ून -पसीना अगर बहाया ,
क़िस्मत लालाज़ार मिलेगी ॥

मिलकर गर आवाज़ उठाओ ,
सहमी हर सरकार मिलेगी ॥

अकड़ उसी दिन ढीली होगी ,
वक़्त की जिस पल मार मिलेगी ॥ 

Friday, September 6

मशविरा है मुफ़्त में ये इसकी क़ीमत जानिए।
दूसरों की फ़िक्र क्या है अपनी बाबत जानिए ॥

क़ीमती काग़ज़ के टुकड़ों से बड़ा ईमान है ,
जो मिले ईमान से बस उसमें बरकत जानिए ॥

दूसरों को नापिएगा अपने क़द को देखकर  ,
आपको सहनी नहीं होगी ज़लालत जानिए ॥

इक हसीं कमसिन बला की डायरी -मज़मून से ,
लाल-नीली बत्तियों की हर शराफ़त जानिए ॥

राह में कुछ पल ठहरकर गुफ़्तगू कर लीजिए ,
ज़िंदगी फिर दे न दे इसकी इजाज़त जानिए ॥

वक़्त के आगे किसी की चल न पाई है कभी ,
इसके पल-पल में समाई कितनी ताक़त जानिए ॥

आप ख़ुद मिट जाएँगे अपनी जड़ों को खोदकर ,
किस क़दर महँगी पड़ेगी ये शरारत जानिए ॥ 

Thursday, September 5

भारत की पावन वसुधा पर ,
गुरु पद पूजित और महान।
वेदों में भी किया गया इस ,
पावन पद का बड़ा बखान ॥

देवों  से भी पहले जिसका ,
नाम उचारा  जाता है।
जो सच्चा पथदर्शन देकर ,
मंज़िल तक पहुँचाता है ॥

सच्चा साथी और हितैषी ,
बनकर यह संग रहता है।
ज्ञान -सुरभि बनकर साँसों में ,
जो सदियों तक बहता है ॥

गुरु - शिष्य का यह शुभ नाता ,
सोचें पावन है कितना ,
हिमगिरि के शिखरों से निकले ,
गंगा माँ के जल जितना ॥

इस नाते की मर्यादा को ,
निभा सकें हम कुछ ऐसे।
गुरुवर रामकृष्ण बन जाएँ ,
शिष्य विवेकानंद जैसे ॥

अगर स्वार्थमय ,अंधे युग में ,
बस इतना हो जाए जो।
वही पुराना , नातों में फिर ,
अपनापन आ जाए जो ॥

हर उद्देश्य सफल होगा तब ,
हर मंज़िल मिल जाएगी।
नातों की मुरझाई कलिका ,
वह फिर से खिल जाएगी ॥

गुरु - शिष्य का निर्मल नाता ,
क्षण भर भी न खंडित हो।
भारत क्या सारे जग में यह ,
पूजित , महिमामंडित हो ॥


Sunday, September 1

सिर पर ले तलवार खड़ा है।
वक़्त बना ग़द्दार खड़ा है ॥

समझौते से सुलझे गुत्थी ,
युद्ध लिए आकार खड़ा है ||

उम्र बड़ी या फिर मजबूरी ,
बूढ़ा लेकर भार खड़ा है ॥

महँगाई का मुँह फैला है ,
हर तबक़ा लाचार खड़ा है ॥

मैं भी हूँ इस पार अभी तक ,
वो भी तो उस पार खड़ा है ॥ 

Friday, August 30

ख़ूबसूरत तेरा मुस्कुराना लगे।
ये मेरी आरज़ू का ठिकाना लगे ॥

तू जो शर्माए तो एक ग़ज़ल -सी लगे ,
कुछ कहे बुलबुलों का तराना लगे ॥

तोड़ने के लिए एक पल है बहुत ,
रिश्ता गर जोड़िए तो ज़माना लगे ॥

तेरा हर इक बहाना मुझे सच लगे ,
मेरा सच भी तुझे इक बहाना लगे ॥

गर पढूँगा तो साँसें महक जाएँगी ,
तेरा ख़त ख़ुशबुओं का ख़ज़ाना लगे ॥ 
हम कहाँ तन्हा रहेंगे रात भर।
दर्द आँखों से बहेंगे रात भर ॥

गुफ़्तगू लंबी चलेगी देखिए ,
दर्द कुछ , कुछ हम कहेंगे रात भर ॥

नींद तुमको भी कहाँ आ पाएगी ,
साथिया , गर हम जगेंगे रात भर ॥

इक तरन्नुम चाहिए बस प्यार का,
फिर ग़ज़ल - सा हम बहेंगे रात भर ॥

दर्द के अशआर लेकर आ गए ,
पीर दिल की अब कहेंगे रात भर ॥

सुबह की उम्मीद आँखों में सँजोए ,
हम जहाँ का ग़म  सहेंगे रात भर ॥  

Wednesday, August 28

जीवन से किसी तौर  कभी हार न मानो।
मुश्किल भी अगर हो तो उसे भार न मानो ॥

देने के लिए रास्ता ख़ुद आएगी मंज़िल ,
ख़ुद को कभी मजबूर व लाचार न मानो ॥

फूलों की कोई सेज नहीं माना ये जीवन ,
लेकिन कभी भूले से इसे ख़ार  न मानो ॥

मुश्किल की घड़ी में नहीं जो साथ खड़ा हो ,
हमदर्द नहीं है वो उसे यार न मानो ॥

जिस्मों की ज़रूरत को मुहब्बत नहीं कहते ,
वो सिर्फ़ हवस है उसे तुम प्यार न मानो ॥

जो वक़्त के साँचे में ख़ुद को ढाल न पाए ,
नादान है वो उसको समझदार न मानो ॥ 

Wednesday, August 21

बिजली , पानी सबकी क़िल्लत ,राजा जी ।
आम आदमी की है ज़िल्लत ,राजा जी ॥

पास चुनावी घड़ियाँ  आईं इसीलिए ,
दिखते सबकी करते ख़िदमत ,राजा जी ॥

शुरू निवाले से हो मंडी में बिकती ,
कितनी सस्ती हाय! है अस्मत, राजा जी ॥

कब बैठेगा ऊँट सही करवट बोलें ,
कब तक सहनी होगी दिक़्क़्त , राजा जी ॥

बाँटे जाएँ नोट तो न कैसे आए ,
आम सभा में भारी ख़लक़त  ,राजा जी ॥

पैर पसारे झूठ करे गुड़ - गुड़ हुक्का ,
सच बेचारा करे मशक़्क़त ,राजा जी ॥

यहाँ तो तन की चादर छोटी पड़ती है ,
कैसी दोज़ख़ , कैसी जन्नत, राजा जी ॥ 
दिल है एक जुआरी देख।
हर ख़्वाहिश है हारी देख ॥

टूट गया पर झुका नहीं मैं ,
मेरी भी ख़ुद्दारी देख ॥

वक़्त पड़े पर मुँह मोड़े है ,
अबकी आपसदारी देख ॥

कोसे महँगाई को चूल्हा ,
महँगी है तरकारी देख ॥

हो सकता है पानी दे दे ,
पर नल है सरकारी देख ॥

गर पहिया ले सरके फ़ाइल ,
चैक जल्द हो जारी देख ॥ 

Monday, August 19

दिल जिसमें धड़कता हो वो पत्थर नहीं होता।
ये तजरुबा अपना है जो कमतर नहीं होता ॥

रातों की नींद दिन का सुकूँ बेचने वालो ,
पैसा कभी सुकून से बढ़कर नहीं होता ॥

रिश्तों में जहाँ प्यार - भरोसा ही नहीं हो ,
कहने के लिए है वो मगर घर नहीं होता ॥

ये कोठियाँ सोती हैं लिए नींद की गोली ,
ऐसे कभी बेचैन तो छप्पर नहीं होता ॥

मेहनत से उतर आते हैं धरती पे सितारे ,
वरना कोई तिनका भी मयस्सर नहीं होता ॥ 

ग़ज़ल

झूठी -झूठी शान नहीं हो।
ताक़त का अभिमान नहीं हो ॥

सम्मानित हों हंस सदा ही,
बगुलों का सम्मान नहीं हो ॥

खादी पहनें  गाँधीवादी ,
घबराकर मतदान नहीं हो ॥

अर्जुन बनकर लक्ष्य बेध दो ,
भटका - भटका ध्यान नहीं हो ॥

  रहे चहकती होंठों - होंठों ,
क़ैद कभी मुस्कान नहीं हो ॥

मालिक से बस यही दुआ है ,
इन्सां में हैवान नहीं हो ॥

दीवाली के दीप न काँपें ,
सहमा - सा रमज़ान नहीं हो ॥ 

Sunday, August 18

ग़ज़ल

                        ग़ज़ल
न होता था कभी जब फ़ोन काग़ज़ का सहारा था।
कभी हमने भी दिल का हाल काग़ज़ पे उतारा था ॥

खिले फूलों की तरहा वो हमें महसूस होता है ,
जो लम्हा प्यार में हमने कभी संग - संग गुज़ारा था ॥

अधूरी थी ग़ज़ल उसका तरन्नुम भी अधूरा था,
न जब तक ज़िंदगी को यार लफ़्ज़ों में उतारा था ॥

भले अब नाम लेकर बोलने का है चलन फिर भी ,
हमें है याद जब तुमने अजी कहकर पुकारा था ॥

लिए नफ़रत गुजारें ज़िंदगी वो जान लें इतना ,
जहाँ हारा हमेशा प्यार के बोलों से हारा था ॥

इसे दीवानगी की हद कहें या प्यार का जादू ,
हमारा दिल तुम्हारा था , तुम्हारा दिल हमारा था ॥ 

ग़ज़ल


इस शहर में दूरियों की इतनी जुर्रत हो गई।
ख़ुद से बतियाए भी हमको एक मुद्दत हो गई ॥

अब निवाले की नमक के साथ होगी दोस्ती ,
सब्ज़ियों की  देखिएगा कितनी क़ीमत हो गई ॥

हो कमाई नेक गर तो क्या हज़ारों -सैकड़ों ,
तुमको थोड़े में लगेगा ख़ूब बरकत हो गई ॥

ये शहर है वक़्त इसमें कब ठहरता है जनाब ,
हर किसी के पास इसकी आज क़िल्लत हो गई ॥

हाथ थामे थे हवा का मंज़िलों पे आँख थी ,
पर तभी ये ज़िंदगानी बेमुरव्वत हो गई ॥

तुम न थे तो  ज़िंदगी थी इक उदासी की तरहा ,
तुम मिले तो ज़िंदगानी ख़ूबसूरत हो गई ॥ 

Saturday, August 17


कोशिश नहीं करोगे तो पत्ता न  हिलेगा।
यूँ बैठे रहोगे तो तुम्हें कुछ न  मिलेगा।।
गर तेज़ हवाओं से डरोगे तो हार है,
ये ज़िंदगी का फूल तो आँधी में खिलेगा।।


Thursday, August 15

ग़ज़ल

मुल्क मज़हब मुल्क ही ईमान होना चाहिए।
हर किसी को मुल्क पर अभिमान होना चाहिए।।

हो जहाँ इंसानियत बस मज़हबी  दंगे न हों,
ख़्वाब  है ऐसा ही हिंदुस्तान होना चाहिए।।

मांगता हो मुल्क तो पीछे नहीं हटना कभी,
ख़ुद ही आगे दौड़कर क़ुर्बान होना चाहिए।।

मशविरा है ख़ुद को पैसों से कभी मत नापिए,
क़द बड़ा करना है तो इंसान होना चाहिए।।

आप चाहेंगे बढ़ेगी, रोक दें रुक जाएगी,
मुल्क इक गाड़ी है इतना ध्यान होना चाहिए।।

नेक इंसानों के हाथों में हो अपनी बागडोर,
अब न संसद में कोई शैतान होना चाहिए।।

आज़ादी का यह पुनीत दिन

आज़ादी का यह पुनीत दिन, क्या कहता है जानो ।
राष्ट्रप्रेम के उज्ज्वल दर्पण में खुद को पहचानो ।।
विश्व-क्षितिज पर अपना भारत ध्रुवतारे-सा चमके। 
दया-प्रेम की किरणें लेकर यह दिनकर-सा दमके ।।
पंथ कठिन है, समय कठिन है, अतः संभलकर चलना। 
बुरे विचारों की ज्वाला से बचकर आप निकलना ।।
ऐसा भारत हो, जिसमें न चले द्वेष की आंधी। 
हिंसा की होली जल जाए , घर- घर में हों गाँधी।। 
रामकृष्ण से गुरुवर हों , जो शिक्षा-दीप जलायें। 
शिष्य विवेकानंद जैसे हों , जो कर्त्तव्य निभायें ।।
विश्व- भाईचारे के भावों से सारे मन महकें। 
भारत के तरुवर पर सारे जग के पंछी चहकें।। 
अपना हर कर्त्तव्य निभायें, मिलकर क़दम बढायें। 
राष्ट्रधर्म का मधुर तराना ,हर्षित होकर गायें ।।
संकल्पित हैं एक कंठ से कहदो नभ गुंजित हो । 
जिससे अपनी देश-वाटिका , खिले और सुरभित हो ।।
अपना वतन है प्यार की किताब की तरह
खुशबू बिखेरते हुए गुलाब की तरह 
परवरदिगार दिल की दुआ को कबूल कर 
दमके हमारा मुल्क आफ़ताब की तरह.……. 
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!!!!