Sunday, September 1

सिर पर ले तलवार खड़ा है।
वक़्त बना ग़द्दार खड़ा है ॥

समझौते से सुलझे गुत्थी ,
युद्ध लिए आकार खड़ा है ||

उम्र बड़ी या फिर मजबूरी ,
बूढ़ा लेकर भार खड़ा है ॥

महँगाई का मुँह फैला है ,
हर तबक़ा लाचार खड़ा है ॥

मैं भी हूँ इस पार अभी तक ,
वो भी तो उस पार खड़ा है ॥ 

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