Monday, September 9

या तो यूँ घबराना छोड़।
या फिर साथ निभाना छोड़ ॥

पीठ दिखाने की गर सोचे ,
तो आवाज़ उठाना छोड़ ॥

गूँजेगी आवाज़ फ़िज़ाँ में ,
डर - डरकर चिल्लाना छोड़ ॥

तेवर मुट्ठी में लेकर चल ,
ज़ुल्मों से डर जाना छोड़ ॥

जो होगा देखा जाएगा ,
कुछ करके पछताना छोड़ ॥

निभ जाएँ तो ठीक रहेगा ,
वरना क़समें खाना छोड़ ॥

मंज़िल चाहे तो पैरों के ,
छालों को सहलाना छोड़ ॥ 

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