झूठ की तू हिमाकत न कर।
है बड़ी ये शरारत न कर ॥
बाद में तोड़ देगी कमर ,
क़र्ज़ लेकर के दावत न कर ॥
भाई - भाई को जो तोड़ दे,
इतनी ओछी सियासत न कर ॥
दोस्ती कर मिलेगा सुकूँ ,
ज़िंदगी से बग़ावत न कर ॥
इसकी चोरी न रुक पाएगी ,
दिल की इतनी हिफ़ाज़त न कर ॥
है बड़ी ये शरारत न कर ॥
बाद में तोड़ देगी कमर ,
क़र्ज़ लेकर के दावत न कर ॥
भाई - भाई को जो तोड़ दे,
इतनी ओछी सियासत न कर ॥
दोस्ती कर मिलेगा सुकूँ ,
ज़िंदगी से बग़ावत न कर ॥
इसकी चोरी न रुक पाएगी ,
दिल की इतनी हिफ़ाज़त न कर ॥
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