Tuesday, September 17

झूठ की तू हिमाकत न कर।
है बड़ी ये शरारत न कर ॥

बाद में तोड़ देगी कमर ,
क़र्ज़ लेकर के दावत न कर ॥

भाई - भाई को जो तोड़  दे,
इतनी ओछी सियासत न कर ॥

दोस्ती कर मिलेगा सुकूँ ,
ज़िंदगी से बग़ावत न कर ॥

इसकी चोरी न रुक पाएगी ,
दिल की इतनी हिफ़ाज़त न कर ॥ 

No comments:

Post a Comment