भीड़ में तन्हा खड़े हैं।
हम भी दीवाने बड़े हैं ॥
छोड़ ज़िद हमको मनाओ,
आज हम ज़िद पर अड़े हैं ॥
साथ छूटा था जहाँ पर ,
हम वहाँ अब तक खड़े हैं ॥
रूठने के बाद तुमसे ,
ख़ुद से हम कितना लड़े हैं ॥
वक़्त का पहरा पड़ा हैं ,
हम ख़ज़ाने-सा गड़े हैं ॥
मंज़िलें ख़ुद राह देंगी ,
सोचकर जब चल पड़े हैं ॥
हम भी दीवाने बड़े हैं ॥
छोड़ ज़िद हमको मनाओ,
आज हम ज़िद पर अड़े हैं ॥
साथ छूटा था जहाँ पर ,
हम वहाँ अब तक खड़े हैं ॥
रूठने के बाद तुमसे ,
ख़ुद से हम कितना लड़े हैं ॥
वक़्त का पहरा पड़ा हैं ,
हम ख़ज़ाने-सा गड़े हैं ॥
मंज़िलें ख़ुद राह देंगी ,
सोचकर जब चल पड़े हैं ॥
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