Sunday, September 29

भीड़ में तन्हा खड़े हैं।
हम भी दीवाने बड़े हैं 

छोड़ ज़िद हमको मनाओ,
आज हम  ज़ि पर अड़े हैं 

साथ छूटा था जहाँ पर ,
हम वहाँ अब तक खड़े हैं  

रूठने के बाद तुमसे , 
ख़ुद से हम कितना लड़े हैं   

वक़्त का पहरा पड़ा हैं ,
हम  ख़ज़ाने-सा गड़े हैं   

 मंज़िलें  ख़ुद राह  देंगी ,
सोचकर जब चल पड़े हैं   

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