Saturday, October 5

तुम बिन जो दुनिया क़िस्मत  की मारी लगती है।
तुमसे मिलकर वो जन्नत -सी प्यारी लगती है । ।

मिलकर लम्हा -लम्हा जी लो ,आँसू ठीक नहीं ,
ऐसा करने से चाहत को गारी लगती है  । ।

तुम आने की बात कहो , फिर कहकर न आओ ,
एक घड़ी भी उस पल कितनी भारी  लगती है  । ।

साँसों में ख़ुशबू भर देती ,धड़कन महकाती ,
ये  भोली मुस्कान हमें फुलवारी लगती है । । 

छप्पर अंधियारे में सीना तान  खड़ा रहता ,
कोठी पर दिन में भी पहरेदारी लगती है । ।

चुपके -चुपके देखें तुमको आँखों में भर लें , 
दिल की  ग़लती है ये लेकिन प्यारी लगती है । ।
   
   

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