Tuesday, October 22

दर्द को मिलता नहीं हमदर्द , कैसा वक़्त है।
आँच रिश्तों की हुई है सर्द , कैसा वक़्त है।।

वक़्त के साये में पलकर हो गए इस्पात हम ,
अब कहाँ पुरसा कहाँ का दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

लहलहाकर जो दिलों को  जोड़ते थे कल कभी,
प्यार के पत्ते हुए वो ज़र्द ,कैसा वक़्त है।।

कार भी है क़र्ज़ की औ' क़र्ज़  का ही है मकाँ ,
बन गई है ज़िंदगी इक दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

चीख़ कानों में पड़ी है और सब ख़ामोश हैं ,
सब शिखंडी सबके सब नामर्द , कैसा वक़्त है।।

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