Thursday, September 5

भारत की पावन वसुधा पर ,
गुरु पद पूजित और महान।
वेदों में भी किया गया इस ,
पावन पद का बड़ा बखान ॥

देवों  से भी पहले जिसका ,
नाम उचारा  जाता है।
जो सच्चा पथदर्शन देकर ,
मंज़िल तक पहुँचाता है ॥

सच्चा साथी और हितैषी ,
बनकर यह संग रहता है।
ज्ञान -सुरभि बनकर साँसों में ,
जो सदियों तक बहता है ॥

गुरु - शिष्य का यह शुभ नाता ,
सोचें पावन है कितना ,
हिमगिरि के शिखरों से निकले ,
गंगा माँ के जल जितना ॥

इस नाते की मर्यादा को ,
निभा सकें हम कुछ ऐसे।
गुरुवर रामकृष्ण बन जाएँ ,
शिष्य विवेकानंद जैसे ॥

अगर स्वार्थमय ,अंधे युग में ,
बस इतना हो जाए जो।
वही पुराना , नातों में फिर ,
अपनापन आ जाए जो ॥

हर उद्देश्य सफल होगा तब ,
हर मंज़िल मिल जाएगी।
नातों की मुरझाई कलिका ,
वह फिर से खिल जाएगी ॥

गुरु - शिष्य का निर्मल नाता ,
क्षण भर भी न खंडित हो।
भारत क्या सारे जग में यह ,
पूजित , महिमामंडित हो ॥


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