Wednesday, August 21

बिजली , पानी सबकी क़िल्लत ,राजा जी ।
आम आदमी की है ज़िल्लत ,राजा जी ॥

पास चुनावी घड़ियाँ  आईं इसीलिए ,
दिखते सबकी करते ख़िदमत ,राजा जी ॥

शुरू निवाले से हो मंडी में बिकती ,
कितनी सस्ती हाय! है अस्मत, राजा जी ॥

कब बैठेगा ऊँट सही करवट बोलें ,
कब तक सहनी होगी दिक़्क़्त , राजा जी ॥

बाँटे जाएँ नोट तो न कैसे आए ,
आम सभा में भारी ख़लक़त  ,राजा जी ॥

पैर पसारे झूठ करे गुड़ - गुड़ हुक्का ,
सच बेचारा करे मशक़्क़त ,राजा जी ॥

यहाँ तो तन की चादर छोटी पड़ती है ,
कैसी दोज़ख़ , कैसी जन्नत, राजा जी ॥ 

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