Friday, December 6

इक शम्मा जब-जब तूफ़ानों से टकराया करती है।।
तेज़ हवा को दूध छठी का याद दिलाया करती है।।

कोशिश लाख करो पर कैसे बाँध सकोगे बतलाओ ,
ख़ुशबू तो ख़ुशबू होती है हर सू छाया करती है।।

हाथ पकड़कर जो हिम्मत का राहों में बढ़ते जाते ,
बाधा चाहे जैसी भी हो , सब हट जाया करती है।।

लगी झलकने आज सफ़ेदी मेरे बालों से पर माँ ,
फिर भी बच्चा समझ हमेशा तू समझाया करती है।।

घर में देखे एक बिचारी बेवा बढ़ती बिटिया को ,
देख ज़माने की नज़रों को वो घबराया करती है।।

दूर गई है माँ  दुनिया से पर उसकी ममता देखो,
बनकर झोंका सिर पर अक्सर हाथ फिराया करती है।।

नहीं बैठने देती चुप वह ,ज़ुबाँ खोल देती उसकी ,
सच का साथ निभाने की जो लत पड़ जाया करती है।।

      


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