Sunday, September 29

भीड़ में तन्हा खड़े हैं।
हम भी दीवाने बड़े हैं 

छोड़ ज़िद हमको मनाओ,
आज हम  ज़ि पर अड़े हैं 

साथ छूटा था जहाँ पर ,
हम वहाँ अब तक खड़े हैं  

रूठने के बाद तुमसे , 
ख़ुद से हम कितना लड़े हैं   

वक़्त का पहरा पड़ा हैं ,
हम  ख़ज़ाने-सा गड़े हैं   

 मंज़िलें  ख़ुद राह  देंगी ,
सोचकर जब चल पड़े हैं   

Friday, September 27

दर्द को यूँ गुनगुनाओ।
हर हरारत भूल जाओ।।

प्यार आँखों में दिखेगा ,
तुम इसे जितना छिपाओ। ।

आँख थोड़ी भी झुके ना ,
दोस्ती ऐसे निभाओ। ।

याद मैं आऊंगा उतना ,
तुम मुझे जितना भुलाओ। ।
 
बेअसर लगने लगे  ग़म ,
तुम ज़रा -सा मुस्कुराओ  । ।


  

Sunday, September 22

इस बदलती  ज़िंदगी के मायने मिलते नहीं।
जो दिखा दें मन हमें वो आईने मिलते नहीं ॥

ज़िंदगी में मंज़िलों के रूबरू जो ले गए ,
क्या हुआ ढूंढे बहुत वो  रास्ते मिलते नहीं ॥

दौर था जब शाख पर अनगिन थे इसकी घोंसले ,
आज इस सूखे शजर पर घोंसले मिलते नहीं ॥

आसमां से जो सितारे तोड़कर लाए कभी ,
आज क्यों मज़बूत ऐसे हौंसले मिलते नहीं ॥

यूँ बढ़ीं नज़दीकियाँ शहरों की गाँवों से प्रसून ,
हर गली है तंग फैले रास्ते मिलते नहीं ॥ 

Thursday, September 19

सच तो सच है , सच रहने दो।
सच को गूँगा मत होने दो ॥

दर्द पिघलकर बह जाएगा ,
बस कुछ पल मिलकर रोने दो ||

ख़ुद को ख़ुद में ढूंढ़ सकोगे ,
ख़ुद को ख़ुद में गर खोने दो ॥

दिल के खेतों में नफ़रत की ,
फ़सलें बिल्कुल मत बोने दो ॥

नहीं अलग आयत - चौपाई ,
इन दोनों को संग रहने दो ॥

रमुआ का हो या जुम्मन का ,
ख़ून किसी का मत बहने दो ॥ 

Tuesday, September 17

झूठ की तू हिमाकत न कर।
है बड़ी ये शरारत न कर ॥

बाद में तोड़ देगी कमर ,
क़र्ज़ लेकर के दावत न कर ॥

भाई - भाई को जो तोड़  दे,
इतनी ओछी सियासत न कर ॥

दोस्ती कर मिलेगा सुकूँ ,
ज़िंदगी से बग़ावत न कर ॥

इसकी चोरी न रुक पाएगी ,
दिल की इतनी हिफ़ाज़त न कर ॥ 

Sunday, September 15

अगर मुस्कान को गिरवी रखोगे जी न पाओगे।
बड़ी ताक़त मिलेगी जब ज़रा तुम मुस्कुराओगे ॥

यक़ीनन वो मेरा ही नाम होगा देख लेना तुम ,
कभी जब रेत पर यूँ ही कभी उँगली चलाओगे ॥

गिरा दो आज तुम इन बेरहम रस्मों - रिवाजों को ,
पहनकर बेड़ियाँ जब तक चलोगे , लड़खड़ाओगे ॥

अधूरी ही रहेंगी कोशिशें तुम आज़मा लेना ,
बहुत मैं याद आऊँगा , मुझे जितना भुलाओगे ॥

परिंदे चूम लेंगे आसमां के हर सितारे को,
कफ़स को तोड़कर उनको अगर ऊपर उड़ाओगे ॥ 

Wednesday, September 11

हैवान निर्भया के गर रह गए जो ज़िंदा।
तड़पेगा देश जैसे ,घायल हुआ परिंदा ॥

उस रात दरिंदों ने ,
मासूमियत को लूटा
अपनी हवस से अस्मत
औ' रूह को खरोंचा

उसकी तड़प पे वहशी ,
ख़ुश होके नाचते थे
हैवानियत से रूह को ,
टुकड़ों में बाँटते थे

तड़पी  बहुत वो लेकिन पिघला न इक दरिंदा ॥
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

माता -पिता की हसरत ,
परवान चढ़ानी थी
मंज़िल की तरफ़ कल -कल ,
बहता हुआ पानी थी

पंखों से आसमाँ को वो ,
नापना चाहती थी
वो तेज़ हवाओं का ,
रुख़ मोड़ना चाहती थी

अनजान थी यूँ वहशी फाँसेंगे, फेंक फंदा ।
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

Monday, September 9

या तो यूँ घबराना छोड़।
या फिर साथ निभाना छोड़ ॥

पीठ दिखाने की गर सोचे ,
तो आवाज़ उठाना छोड़ ॥

गूँजेगी आवाज़ फ़िज़ाँ में ,
डर - डरकर चिल्लाना छोड़ ॥

तेवर मुट्ठी में लेकर चल ,
ज़ुल्मों से डर जाना छोड़ ॥

जो होगा देखा जाएगा ,
कुछ करके पछताना छोड़ ॥

निभ जाएँ तो ठीक रहेगा ,
वरना क़समें खाना छोड़ ॥

मंज़िल चाहे तो पैरों के ,
छालों को सहलाना छोड़ ॥ 
दिल हारा तो हार मिलेगी।
मौत खड़ी तैयार मिलेगी ॥

गर तूफ़ाँ की गर्दन पकड़ी ,
जर्जर कश्ती पार मिलेगी ॥

फूल गिरा गर तू डाली से ,
हर पत्ती लाचार मिलेगी ॥

ख़ून -पसीना अगर बहाया ,
क़िस्मत लालाज़ार मिलेगी ॥

मिलकर गर आवाज़ उठाओ ,
सहमी हर सरकार मिलेगी ॥

अकड़ उसी दिन ढीली होगी ,
वक़्त की जिस पल मार मिलेगी ॥ 

Friday, September 6

मशविरा है मुफ़्त में ये इसकी क़ीमत जानिए।
दूसरों की फ़िक्र क्या है अपनी बाबत जानिए ॥

क़ीमती काग़ज़ के टुकड़ों से बड़ा ईमान है ,
जो मिले ईमान से बस उसमें बरकत जानिए ॥

दूसरों को नापिएगा अपने क़द को देखकर  ,
आपको सहनी नहीं होगी ज़लालत जानिए ॥

इक हसीं कमसिन बला की डायरी -मज़मून से ,
लाल-नीली बत्तियों की हर शराफ़त जानिए ॥

राह में कुछ पल ठहरकर गुफ़्तगू कर लीजिए ,
ज़िंदगी फिर दे न दे इसकी इजाज़त जानिए ॥

वक़्त के आगे किसी की चल न पाई है कभी ,
इसके पल-पल में समाई कितनी ताक़त जानिए ॥

आप ख़ुद मिट जाएँगे अपनी जड़ों को खोदकर ,
किस क़दर महँगी पड़ेगी ये शरारत जानिए ॥ 

Thursday, September 5

भारत की पावन वसुधा पर ,
गुरु पद पूजित और महान।
वेदों में भी किया गया इस ,
पावन पद का बड़ा बखान ॥

देवों  से भी पहले जिसका ,
नाम उचारा  जाता है।
जो सच्चा पथदर्शन देकर ,
मंज़िल तक पहुँचाता है ॥

सच्चा साथी और हितैषी ,
बनकर यह संग रहता है।
ज्ञान -सुरभि बनकर साँसों में ,
जो सदियों तक बहता है ॥

गुरु - शिष्य का यह शुभ नाता ,
सोचें पावन है कितना ,
हिमगिरि के शिखरों से निकले ,
गंगा माँ के जल जितना ॥

इस नाते की मर्यादा को ,
निभा सकें हम कुछ ऐसे।
गुरुवर रामकृष्ण बन जाएँ ,
शिष्य विवेकानंद जैसे ॥

अगर स्वार्थमय ,अंधे युग में ,
बस इतना हो जाए जो।
वही पुराना , नातों में फिर ,
अपनापन आ जाए जो ॥

हर उद्देश्य सफल होगा तब ,
हर मंज़िल मिल जाएगी।
नातों की मुरझाई कलिका ,
वह फिर से खिल जाएगी ॥

गुरु - शिष्य का निर्मल नाता ,
क्षण भर भी न खंडित हो।
भारत क्या सारे जग में यह ,
पूजित , महिमामंडित हो ॥


Sunday, September 1

सिर पर ले तलवार खड़ा है।
वक़्त बना ग़द्दार खड़ा है ॥

समझौते से सुलझे गुत्थी ,
युद्ध लिए आकार खड़ा है ||

उम्र बड़ी या फिर मजबूरी ,
बूढ़ा लेकर भार खड़ा है ॥

महँगाई का मुँह फैला है ,
हर तबक़ा लाचार खड़ा है ॥

मैं भी हूँ इस पार अभी तक ,
वो भी तो उस पार खड़ा है ॥