Thursday, August 15

आज़ादी का यह पुनीत दिन

आज़ादी का यह पुनीत दिन, क्या कहता है जानो ।
राष्ट्रप्रेम के उज्ज्वल दर्पण में खुद को पहचानो ।।
विश्व-क्षितिज पर अपना भारत ध्रुवतारे-सा चमके। 
दया-प्रेम की किरणें लेकर यह दिनकर-सा दमके ।।
पंथ कठिन है, समय कठिन है, अतः संभलकर चलना। 
बुरे विचारों की ज्वाला से बचकर आप निकलना ।।
ऐसा भारत हो, जिसमें न चले द्वेष की आंधी। 
हिंसा की होली जल जाए , घर- घर में हों गाँधी।। 
रामकृष्ण से गुरुवर हों , जो शिक्षा-दीप जलायें। 
शिष्य विवेकानंद जैसे हों , जो कर्त्तव्य निभायें ।।
विश्व- भाईचारे के भावों से सारे मन महकें। 
भारत के तरुवर पर सारे जग के पंछी चहकें।। 
अपना हर कर्त्तव्य निभायें, मिलकर क़दम बढायें। 
राष्ट्रधर्म का मधुर तराना ,हर्षित होकर गायें ।।
संकल्पित हैं एक कंठ से कहदो नभ गुंजित हो । 
जिससे अपनी देश-वाटिका , खिले और सुरभित हो ।।

2 comments:

  1. sir its a very nice poem....i hav always liked them since i was in 8th class!!

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