Friday, August 30

ख़ूबसूरत तेरा मुस्कुराना लगे।
ये मेरी आरज़ू का ठिकाना लगे ॥

तू जो शर्माए तो एक ग़ज़ल -सी लगे ,
कुछ कहे बुलबुलों का तराना लगे ॥

तोड़ने के लिए एक पल है बहुत ,
रिश्ता गर जोड़िए तो ज़माना लगे ॥

तेरा हर इक बहाना मुझे सच लगे ,
मेरा सच भी तुझे इक बहाना लगे ॥

गर पढूँगा तो साँसें महक जाएँगी ,
तेरा ख़त ख़ुशबुओं का ख़ज़ाना लगे ॥ 
हम कहाँ तन्हा रहेंगे रात भर।
दर्द आँखों से बहेंगे रात भर ॥

गुफ़्तगू लंबी चलेगी देखिए ,
दर्द कुछ , कुछ हम कहेंगे रात भर ॥

नींद तुमको भी कहाँ आ पाएगी ,
साथिया , गर हम जगेंगे रात भर ॥

इक तरन्नुम चाहिए बस प्यार का,
फिर ग़ज़ल - सा हम बहेंगे रात भर ॥

दर्द के अशआर लेकर आ गए ,
पीर दिल की अब कहेंगे रात भर ॥

सुबह की उम्मीद आँखों में सँजोए ,
हम जहाँ का ग़म  सहेंगे रात भर ॥  

Wednesday, August 28

जीवन से किसी तौर  कभी हार न मानो।
मुश्किल भी अगर हो तो उसे भार न मानो ॥

देने के लिए रास्ता ख़ुद आएगी मंज़िल ,
ख़ुद को कभी मजबूर व लाचार न मानो ॥

फूलों की कोई सेज नहीं माना ये जीवन ,
लेकिन कभी भूले से इसे ख़ार  न मानो ॥

मुश्किल की घड़ी में नहीं जो साथ खड़ा हो ,
हमदर्द नहीं है वो उसे यार न मानो ॥

जिस्मों की ज़रूरत को मुहब्बत नहीं कहते ,
वो सिर्फ़ हवस है उसे तुम प्यार न मानो ॥

जो वक़्त के साँचे में ख़ुद को ढाल न पाए ,
नादान है वो उसको समझदार न मानो ॥ 

Wednesday, August 21

बिजली , पानी सबकी क़िल्लत ,राजा जी ।
आम आदमी की है ज़िल्लत ,राजा जी ॥

पास चुनावी घड़ियाँ  आईं इसीलिए ,
दिखते सबकी करते ख़िदमत ,राजा जी ॥

शुरू निवाले से हो मंडी में बिकती ,
कितनी सस्ती हाय! है अस्मत, राजा जी ॥

कब बैठेगा ऊँट सही करवट बोलें ,
कब तक सहनी होगी दिक़्क़्त , राजा जी ॥

बाँटे जाएँ नोट तो न कैसे आए ,
आम सभा में भारी ख़लक़त  ,राजा जी ॥

पैर पसारे झूठ करे गुड़ - गुड़ हुक्का ,
सच बेचारा करे मशक़्क़त ,राजा जी ॥

यहाँ तो तन की चादर छोटी पड़ती है ,
कैसी दोज़ख़ , कैसी जन्नत, राजा जी ॥ 
दिल है एक जुआरी देख।
हर ख़्वाहिश है हारी देख ॥

टूट गया पर झुका नहीं मैं ,
मेरी भी ख़ुद्दारी देख ॥

वक़्त पड़े पर मुँह मोड़े है ,
अबकी आपसदारी देख ॥

कोसे महँगाई को चूल्हा ,
महँगी है तरकारी देख ॥

हो सकता है पानी दे दे ,
पर नल है सरकारी देख ॥

गर पहिया ले सरके फ़ाइल ,
चैक जल्द हो जारी देख ॥ 

Monday, August 19

दिल जिसमें धड़कता हो वो पत्थर नहीं होता।
ये तजरुबा अपना है जो कमतर नहीं होता ॥

रातों की नींद दिन का सुकूँ बेचने वालो ,
पैसा कभी सुकून से बढ़कर नहीं होता ॥

रिश्तों में जहाँ प्यार - भरोसा ही नहीं हो ,
कहने के लिए है वो मगर घर नहीं होता ॥

ये कोठियाँ सोती हैं लिए नींद की गोली ,
ऐसे कभी बेचैन तो छप्पर नहीं होता ॥

मेहनत से उतर आते हैं धरती पे सितारे ,
वरना कोई तिनका भी मयस्सर नहीं होता ॥ 

ग़ज़ल

झूठी -झूठी शान नहीं हो।
ताक़त का अभिमान नहीं हो ॥

सम्मानित हों हंस सदा ही,
बगुलों का सम्मान नहीं हो ॥

खादी पहनें  गाँधीवादी ,
घबराकर मतदान नहीं हो ॥

अर्जुन बनकर लक्ष्य बेध दो ,
भटका - भटका ध्यान नहीं हो ॥

  रहे चहकती होंठों - होंठों ,
क़ैद कभी मुस्कान नहीं हो ॥

मालिक से बस यही दुआ है ,
इन्सां में हैवान नहीं हो ॥

दीवाली के दीप न काँपें ,
सहमा - सा रमज़ान नहीं हो ॥ 

Sunday, August 18

ग़ज़ल

                        ग़ज़ल
न होता था कभी जब फ़ोन काग़ज़ का सहारा था।
कभी हमने भी दिल का हाल काग़ज़ पे उतारा था ॥

खिले फूलों की तरहा वो हमें महसूस होता है ,
जो लम्हा प्यार में हमने कभी संग - संग गुज़ारा था ॥

अधूरी थी ग़ज़ल उसका तरन्नुम भी अधूरा था,
न जब तक ज़िंदगी को यार लफ़्ज़ों में उतारा था ॥

भले अब नाम लेकर बोलने का है चलन फिर भी ,
हमें है याद जब तुमने अजी कहकर पुकारा था ॥

लिए नफ़रत गुजारें ज़िंदगी वो जान लें इतना ,
जहाँ हारा हमेशा प्यार के बोलों से हारा था ॥

इसे दीवानगी की हद कहें या प्यार का जादू ,
हमारा दिल तुम्हारा था , तुम्हारा दिल हमारा था ॥ 

ग़ज़ल


इस शहर में दूरियों की इतनी जुर्रत हो गई।
ख़ुद से बतियाए भी हमको एक मुद्दत हो गई ॥

अब निवाले की नमक के साथ होगी दोस्ती ,
सब्ज़ियों की  देखिएगा कितनी क़ीमत हो गई ॥

हो कमाई नेक गर तो क्या हज़ारों -सैकड़ों ,
तुमको थोड़े में लगेगा ख़ूब बरकत हो गई ॥

ये शहर है वक़्त इसमें कब ठहरता है जनाब ,
हर किसी के पास इसकी आज क़िल्लत हो गई ॥

हाथ थामे थे हवा का मंज़िलों पे आँख थी ,
पर तभी ये ज़िंदगानी बेमुरव्वत हो गई ॥

तुम न थे तो  ज़िंदगी थी इक उदासी की तरहा ,
तुम मिले तो ज़िंदगानी ख़ूबसूरत हो गई ॥ 

Saturday, August 17


कोशिश नहीं करोगे तो पत्ता न  हिलेगा।
यूँ बैठे रहोगे तो तुम्हें कुछ न  मिलेगा।।
गर तेज़ हवाओं से डरोगे तो हार है,
ये ज़िंदगी का फूल तो आँधी में खिलेगा।।


Thursday, August 15

ग़ज़ल

मुल्क मज़हब मुल्क ही ईमान होना चाहिए।
हर किसी को मुल्क पर अभिमान होना चाहिए।।

हो जहाँ इंसानियत बस मज़हबी  दंगे न हों,
ख़्वाब  है ऐसा ही हिंदुस्तान होना चाहिए।।

मांगता हो मुल्क तो पीछे नहीं हटना कभी,
ख़ुद ही आगे दौड़कर क़ुर्बान होना चाहिए।।

मशविरा है ख़ुद को पैसों से कभी मत नापिए,
क़द बड़ा करना है तो इंसान होना चाहिए।।

आप चाहेंगे बढ़ेगी, रोक दें रुक जाएगी,
मुल्क इक गाड़ी है इतना ध्यान होना चाहिए।।

नेक इंसानों के हाथों में हो अपनी बागडोर,
अब न संसद में कोई शैतान होना चाहिए।।

आज़ादी का यह पुनीत दिन

आज़ादी का यह पुनीत दिन, क्या कहता है जानो ।
राष्ट्रप्रेम के उज्ज्वल दर्पण में खुद को पहचानो ।।
विश्व-क्षितिज पर अपना भारत ध्रुवतारे-सा चमके। 
दया-प्रेम की किरणें लेकर यह दिनकर-सा दमके ।।
पंथ कठिन है, समय कठिन है, अतः संभलकर चलना। 
बुरे विचारों की ज्वाला से बचकर आप निकलना ।।
ऐसा भारत हो, जिसमें न चले द्वेष की आंधी। 
हिंसा की होली जल जाए , घर- घर में हों गाँधी।। 
रामकृष्ण से गुरुवर हों , जो शिक्षा-दीप जलायें। 
शिष्य विवेकानंद जैसे हों , जो कर्त्तव्य निभायें ।।
विश्व- भाईचारे के भावों से सारे मन महकें। 
भारत के तरुवर पर सारे जग के पंछी चहकें।। 
अपना हर कर्त्तव्य निभायें, मिलकर क़दम बढायें। 
राष्ट्रधर्म का मधुर तराना ,हर्षित होकर गायें ।।
संकल्पित हैं एक कंठ से कहदो नभ गुंजित हो । 
जिससे अपनी देश-वाटिका , खिले और सुरभित हो ।।
अपना वतन है प्यार की किताब की तरह
खुशबू बिखेरते हुए गुलाब की तरह 
परवरदिगार दिल की दुआ को कबूल कर 
दमके हमारा मुल्क आफ़ताब की तरह.……. 
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!!!!