Thursday, December 17


हैवान निर्भया के गर रह गए जो ज़िंदा।
तड़पेगा देश जैसे ,घायल हुआ परिंदा ॥

उस रात दरिंदों ने ,
मासूमियत को लूटा
अपनी हवस से अस्मत
औ' रूह को खरोंचा

उसकी तड़प पे वहशी ,
ख़ुश होके नाचते थे
हैवानियत से रूह को ,
टुकड़ों में बाँटते थे

तड़पी  बहुत वो लेकिन पिघला न इक दरिंदा ॥
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

माता -पिता की हसरत ,
परवान चढ़ानी थी
मंज़िल की तरफ़ कल -कल ,
बहता हुआ पानी थी

पंखों से आसमाँ को वो ,
नापना चाहती थी
वो तेज़ हवाओं का ,
रुख़ मोड़ना चाहती थी

अनजान थी यूँ वहशी फाँसेंगे, फेंक फंदा ।
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥
              डॉ. विनोद 'प्रसून'   

Sunday, November 29


आतंकी बस आतंकी हैं, इनका मज़हब है आतंक।
मानवता नित झेल रही है, इन साँपों का निर्मम दंश।। 
 
आतंकी फन फैल रहा जो , उसे कुचलना ही होगा।
इकजुट होकर सारे जग को इन्हें मसलना ही होगा।।
 
निर्मम होकर नर -पिशाच ये खूं की नदी बहाते हैं।
ऐसा क्रूर कृत्य करने में तिलभर कब पछताते हैं।।
 
निर्दोषों के शव बिछते जब ज़ालिम ख़ुशी मनाते हैं।
ख़ून बहे जब मानवता का फूले नहीं समाते हैं।।
 
इनकी काली करतूतों से सहमी हर  मुस्कान दिखी
मुंबई, दिल्ली कभी करांची बेहद लहूलुहान दिखीं ।।
 
यू.एस., लंदन,रूस,फ़्रांस के हमलों की भी आह सुनें।
मन को उद्वेलित कर देगी ,सिसकी और कराह सुनें।।
 
दुनिया भर में इन दुष्टों ने कितना नरसंहार किया।
क्रूर सनक के कारण कितने निर्दोषों को मार दिया।।            
 
नरक बना डाली है धरती इन पाजी हत्यारों ने।
ज़ख़्म दिए हैं मानवता को ,इन निर्मम मक्कारों ने।। 
  
सभी राष्ट्राध्यक्ष सुनें अब इनसे बढ़कर टकराएँ।
तहस-नहस कर डालें इनको , तिनका-तिनका बिखराएँ।।.
 
इनके शिविर ध्वस्त होंगे जब इनको मारा जाएगा।
उस दिन पीड़ित मानवता का, दिल हल्का हो जाएगा।।
 
ख़त्म हुए गर नर- पिशाच तो मानवता मुस्काएगी।
सुकूँ मिलेगा तभी ज़मीं को, जन्नत-सी बन जाएगी।।   
                      डॉ. विनोद 'प्रसून'   

             
 

Saturday, November 14


आज देख हालात देश के  कवि-मन चैन न पाता है।

 हाय बड़ा दुर्भाग्य देश टुकड़ों में बँटता जाता है।।

हिंदू -मुस्लिम से क्या होगा , इंसां हो इंसान बनो।

इक -दूजे की ख़ातिर चाहत , इक -दूजे का मान बनो।।

हिंदू को भी प्रेम मिले औ ' मुस्लिम को भी प्यार मिले।

महके पावन नाता फिर से, निखरा-सा संसार मिले ।।

कट्टरवादी बनकर ख़ून बहाना उचित नहीं होगा।

हों उदार फिर कभी देश का तिलभर अहित नहीं होगा।।

काले अध्यायों के पन्ने पुनः नहीं पलटे जाएँ।

प्यार हवा में तैरे केवल , मिटें हृदय की कटुताएँ ।।

लेखक और विचारक अपनी , सच्ची-सी रचनाएँ दें।

कविगण मेल-जोल सरसाती , मृदुल-मधुर कविताएँ दें ।।

क़लमकार जब एक वर्ग की भाषा में बतियाता है।

कविता का जो धर्म है उससे न्याय नहीं कर पाता है ।।

एक वर्ग की बातें केवल चाटुकारिता होती हैं।

वैमनस्य के बीज मनों की क्यारी में जो बोती  हैं ।।

न तो  हिंदू की कहना तुम , नहीं मुसलमां की कहना ।

हो गर सच्चे क़लमकार तो बातें इंसां की कहना  ।।

बहे प्रेम का अमृत चहुँदिशि ,सब मिलकर के पान  करें।

सच्चे इंसां बनकर मानवता  का बस गुणगान करें।।

                                            - डॉ. विनोद 'प्रसून '

              
                                      

Monday, September 28

                              कविता

अपने अमृत जल से पावन, बना रहीं हैं जो कण-कण।
 
ऐसी नदियों को दूषित ना, होने देंगे अपना प्रण।। 

माँ जैसा है आँचल इनका ,जिसमें ममता की छाया है ।

हम हैं धनी भाग्य के हमने ,इनकी ममता को पाया है ।। 

वेदों ने भी इनकी महिमा,  का कितना गुणगान किया है।

सोचो, क्या हमने भी इनकाइतना ही सम्मान किया है ।। 

अगर नहीं तो देर न करना , वरना तो पछताओगे ।

कैसे इनके अमृत से फिर , जीवन धन्य बनाओगे ।। 

पावन नदियों की पावनताबनी रहे ना खंडित हो ।

इनकी छवि भारत क्या जग में, सुरभित महिमामंडित हो ।।

                                                                                 - डॉ.विनोद 'प्रसून' 

Friday, September 4


 
            सच्चा शिक्षक
शब्द बहुत गरिमामय शिक्षक, पावनता में है आकाश।

इसमें मर्यादा का सागर, इसमें सच्चाई का वास।। 

'' से शिष्टाचार बना है, 'क्ष' से क्षमाशील होता है।

'' कर्तव्य सिखाकर सच्चा, मन में कर्मठता बोता है।। 

शिष्ट आचरण , क्षमाशीलता, कर्मठता जो अपनाता है।

सही अर्थ में वह योगी ही, सच्चा शिक्षक कहलाता है ।। 

शिल्पकार होता है शिक्षक, देता  है आकार देश को।

शिष्यों को सद्गुण से भरकर, देता नव आधार देश को ।। 

गुण बहुतेरे इसमें आते , क्षमाशीलता जैसे गुण से।

सच्चा शिक्षक सदा बचा है, स्वार्थ-लोभ जैसे अवगुण से।। 

कर्मशील, कर्तव्यपरायण, कार्यकुशल, कर्मठ होता है।

युग को प्रगति-पथ ले जाता, यह पुनीत इक रथ होता है।। 

यह होता है धुरी देश की , इसपर देश गर्व करता है।

नैतिक जीवन मूल्य देश में , सच्चा शिक्षक ही भरता है ।।  

यह व्यवसाय बहुत पावन है, गौरवान्वित ख़ुद को मानें।
 
समझें ख़ुद को युग-निर्माता, ख़ुद को सच्चा नायक जानें ।।            

ऐसे पावन, पूजित पद को, शत- शत बार नमन करना है।

जब-जब जन्मूँ इस धरती पर, मुझको शिक्षक ही बनना है।।

                                                                     -डॉ. विनोद 'प्रसून'     

   

 

 

 
 

Tuesday, June 9



सरस , सरल मनोहारी है।
अपनी हिंदी प्यारी है।।

मीठे शब्दों वाली है
यह फूलों की डाली है
भारत की पहचान लगे
हिंदी हिंदुस्तान लगे
अद्भुत शान हमारी है।
अपनी हिंदी प्यारी है।।

कबिरा का आखर ढाई है
तुलसी की चौपाई है
यह भावों की सरिता है
मीठी , मोहक कविता है
सुरभित है, उजियारी है। 
अपनी हिंदी प्यारी है।।

अक्षर रस  के छींटे हैं
शब्द शहद से मीठे हैं
यह मन में बस जाती है
जीवन को महकाती है
खिली -खिली फुलवारी है।
अपनी हिंदी प्यारी है।। 

Tuesday, April 7



तुम्हारी याद है ख़ुशबू हवा के साथ बहती है।
मेरी दीवानगी पहरों तुम्हीं  से बात करती है। । 

उदासी लाख हों लेकिन चहकती हैं तमन्नाएँ ,
तुम्हारी इक  नज़र जब भी मुझे छूकर गुज़रती है । ।

महकती  आरज़ू जी भर करे है गुफ़्तगू दिल से ,
मुहब्बत मुस्कराकर रूह में जिस पल उतरती है । ।

हमें कब इल्म था पहले लगाया दिल तभी जाना ,
क्यूँ धड़कन बावरी होकर किसी का दर्द सहती है। ।
 
 
 
 
  

       

 

Saturday, January 24



केशों के झुरमुट में खोने की 'हाँ' थी कल इच्छा मेरी।
मन करता रहता था पल -पल चाहत के उपवन में फेरी।। 

मन में ले सपने चाहत के 'हाँ' मैंने चलना चाहा था।
एक पतंगा बन चाहत की ज्वाला में जलना चाहा था ।।

एक मृदुल चेहरे को लेकर मन रचता था मधुर कहानी।
जिसमें  मैं राजा होता था, फूलों -सी होती थी रानी ।।

उस चेहरे से ख़्वाब जुड़े थे , उस बिन रूह अधूरी थी ।
उसके देखे मिलती राहत , तरसाती  हर दूरी थी ।।

सच कहदूँ तो उस चेहरे बिन जीवन आधा लगता था।
बिन उसके पलकों पे जैसे ख़्वाब न कोई सजता था।।

पर जबसे सीमा पर आया मैं बनकर प्रहरी मतवाला।
सच -सच कहता हूँ भारत माँ हूँ मैं तेरा ही रखवाला ।।

 गर्वित हो अब माँ मैं ख़ुद को तेरा लाल कहा करता हूँ  ।
देशभक्ति की हाला पीकर अब मैं मस्त रहा करता हूँ।।

सपनों की दुनिया से हटकर मैंने जीना सीख लिया है।
तुझ पर मर मिटने का माते अब मैंने संकल्प किया है ।।

(अपने एक सैनिक  मित्र पर आधारित सच्ची  कविता , जिसे सभी सैनिक भाइयों को समर्पित कर रहा हूँ। )



    

Tuesday, January 20


लोहे -पत्थर की बस्ती  में ,फूलों -से जज़्बात कहाँ।
इंसाँ हैं कहलाने भर को ,इंसानों -सी बात कहाँ।।  

वक़्त के साँचे में ढल -ढलकर बदल गई दुनिया सारी ,
अब फूलों-से मुस्काते दिन ,फुलवारी -सी रात  कहाँ।।

खेले चाहे लाख टके के खेल-खिलौनों से  बचपन ,
पर  इनमें माँ की लोरी की मीठी -सी सौगात कहाँ।।  

साँसों -की -साँसों से दूरी ,धड़कन का धड़कन से बैर ,
नाते हों संदल -संदल- से ऐसे अब हालात कहाँ।।  

ठोकर खाने का मतलब है अब औंधे मुँह गिर जाना,
बन जाते थे एक सहारा वो मतवाले हाथ कहाँ।।  

ख़ामोशी करती थी दिल से ,प्यार भरे लफ़्ज़ों में बात ,
दिल से ख़ामोशी सुन लें जो अब ऐसे लम्हात कहाँ।।  

घर के अंदर बैठ अकेला बचपन खेल रहा क्या खेल ,
अब टोली संग गुड्डे -गुड़िया की रचती बारात कहाँ।।
   

Saturday, January 17


ख़ूबसूरत तेरा मुस्कुराना लगे।
ये मेरी आरज़ू का ठिकाना लगे ॥

तू जो शर्माए तो एक ग़ज़ल -सी लगे ,
कुछ कहे बुलबुलों का तराना लगे ॥

तोड़ने के लिए एक पल है बहुत ,
रिश्ता गर जोड़िए तो ज़माना लगे ॥

तेरा हर इक बहाना मुझे सच लगे ,
मेरा सच भी तुझे इक बहाना लगे ॥

गर पढूँगा तो साँसें महक जाएँगी ,
तेरा ख़त ख़ुशबुओं का ख़ज़ाना लगे ॥ 

Friday, January 2


नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।
नई उमंगें , ख़ुशियाँ जी भर, आँगन -आँगन बिखराना।।
             
                   नहीं ईर्ष्या ,  नहीं द्वेष हो  ,
                             ना कटुता हो  ,  ना  नफ़रत
                   इंसां में इंसान फ़क़त हो ,
                              न हो शैतां -सी फ़ितरत
इस दुनिया के हर इंसां को बात यही तुम समझाना। 
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।
           
              अच्छी सेहत ,सोच हो अच्छी ,
                           बोल हों अच्छे , बातें अच्छी
              अच्छे पल-पल , अच्छी घड़ियाँ ,
                           अच्छे दिन हों ,रातें अच्छी
यह सारा संसार हो अच्छा , सबकुछ अच्छा कर जाना।
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।
                   
                      मन दूजे का दुख पहचाने
                                     दुखिया को संबल दे दे
                     मुश्किल में जिसको भी देखे ,
                                    हर मुश्किल का हल दे दे
हर इंसां के मन में ऐसी सोच सदा को भर जाना।
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।