Saturday, November 14


आज देख हालात देश के  कवि-मन चैन न पाता है।

 हाय बड़ा दुर्भाग्य देश टुकड़ों में बँटता जाता है।।

हिंदू -मुस्लिम से क्या होगा , इंसां हो इंसान बनो।

इक -दूजे की ख़ातिर चाहत , इक -दूजे का मान बनो।।

हिंदू को भी प्रेम मिले औ ' मुस्लिम को भी प्यार मिले।

महके पावन नाता फिर से, निखरा-सा संसार मिले ।।

कट्टरवादी बनकर ख़ून बहाना उचित नहीं होगा।

हों उदार फिर कभी देश का तिलभर अहित नहीं होगा।।

काले अध्यायों के पन्ने पुनः नहीं पलटे जाएँ।

प्यार हवा में तैरे केवल , मिटें हृदय की कटुताएँ ।।

लेखक और विचारक अपनी , सच्ची-सी रचनाएँ दें।

कविगण मेल-जोल सरसाती , मृदुल-मधुर कविताएँ दें ।।

क़लमकार जब एक वर्ग की भाषा में बतियाता है।

कविता का जो धर्म है उससे न्याय नहीं कर पाता है ।।

एक वर्ग की बातें केवल चाटुकारिता होती हैं।

वैमनस्य के बीज मनों की क्यारी में जो बोती  हैं ।।

न तो  हिंदू की कहना तुम , नहीं मुसलमां की कहना ।

हो गर सच्चे क़लमकार तो बातें इंसां की कहना  ।।

बहे प्रेम का अमृत चहुँदिशि ,सब मिलकर के पान  करें।

सच्चे इंसां बनकर मानवता  का बस गुणगान करें।।

                                            - डॉ. विनोद 'प्रसून '

              
                                      

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