कविता
अपने अमृत
जल से पावन, बना रहीं
हैं जो कण-कण।
ऐसी नदियों
को दूषित ना, होने देंगे अपना प्रण।।
माँ जैसा
है आँचल इनका ,जिसमें ममता
की छाया है ।
हम हैं धनी
भाग्य के हमने ,इनकी ममता
को पाया है ।।
वेदों ने
भी इनकी महिमा, का कितना
गुणगान किया है।
सोचो, क्या हमने भी इनका, इतना ही सम्मान
किया है ।।
अगर नहीं
तो देर न करना , वरना तो पछताओगे ।
कैसे इनके
अमृत से फिर , जीवन धन्य
बनाओगे ।।
पावन नदियों
की पावनता , बनी रहे ना
खंडित हो ।
इनकी छवि
भारत क्या जग में, सुरभित महिमामंडित
हो ।।
- डॉ.विनोद 'प्रसून'
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