Monday, October 28

कुछ बात तजरुबे की ज़रा जानिए जनाब।
जो कह रहा है वक़्त उसे मानिए जनाब। ।

चेहरों पे हैं सभी के मुखौटे लगे हुवे ,
भीतर छिपा है जो उसे पहचानिए जनाब। ।

जो तेज़ धार में टिके है ,आदमी वही ,
जो रेत बन बहे उसे क्या मानिए जनाब। ।

कीचड़ उछालते  हैं उछालें वो शौक से ,
अपनी हथेलियों को नहीं सानिए जनाब। ।

जो गिड़गिड़ाके माँग ले माफ़ी न कुछ कहे ,
उसपर कभी कमान नहीं तानिए जनाब। ।

जितनी निभाई जा सके उतनी ही घोटिए ,
जो छन सके बस उतनी फ़क़त छानिए जनाब। ।
       

Wednesday, October 23

दिल थोड़ा जज़्बाती रखना।
ख़ुद को मीठी पाती  रखना।।

ग़ज़लों को अशआर मिलेंगे ,
तन्हाई को साथी रखना।।

वक़्त सलामी दे तुझको ,
ऐसा ही क़द-काठी रखना।।

नेक कमाई तो डर कैसा ,
गज़ भर चौड़ी छाती रखना।।

खाने की पहले से सोचो ,
वरना घर मत हाथी रखना।।

ख़ामोशी संग बातें होंगी ,
ख़ुद को ख़ुद का साथी रखना।।           

Tuesday, October 22

दर्द को मिलता नहीं हमदर्द , कैसा वक़्त है।
आँच रिश्तों की हुई है सर्द , कैसा वक़्त है।।

वक़्त के साये में पलकर हो गए इस्पात हम ,
अब कहाँ पुरसा कहाँ का दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

लहलहाकर जो दिलों को  जोड़ते थे कल कभी,
प्यार के पत्ते हुए वो ज़र्द ,कैसा वक़्त है।।

कार भी है क़र्ज़ की औ' क़र्ज़  का ही है मकाँ ,
बन गई है ज़िंदगी इक दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

चीख़ कानों में पड़ी है और सब ख़ामोश हैं ,
सब शिखंडी सबके सब नामर्द , कैसा वक़्त है।।

Monday, October 21

लोहे -पत्थर की बस्ती  में ,फूलों -से जज़्बात कहाँ।
इंसाँ हैं कहलाने भर को ,इंसानों -सी बात कहाँ।।  

वक़्त के साँचे में ढल -ढलकर बदल गई दुनिया सारी ,
अब फूलों-से मुस्काते दिन ,फुलवारी -सी रात  कहाँ।।

खेले चाहे लाख टके के खेल-खिलौनों से  बचपन ,
पर  इनमें माँ की लोरी की मीठी -सी सौगात कहाँ।।  

साँसों -की -साँसों से दूरी ,धड़कन का धड़कन से बैर ,
नाते हों संदल -संदल- से ऐसे अब हालात कहाँ।।  

ठोकर खाने का मतलब है अब औंधे मुँह गिर जाना,
बन जाते थे एक सहारा वो मतवाले हाथ कहाँ।।  

ख़ामोशी करती थी दिल से ,प्यार भरे लफ़्ज़ों में बात ,
दिल से ख़ामोशी सुन लें जो अब ऐसे लम्हात कहाँ।।  

घर के अंदर बैठ अकेला बचपन खेल रहा क्या खेल ,
अब टोली संग गुड्डे -गुड़िया की रचती बारात कहाँ।।
   

Monday, October 14

दिल का दर्द दवा -सा क्यों है ?
पल -पल एक सज़ा -सा क्यों है ?

रिश्तों की गर्माहट सिसके ,
मौसम सर्द हवा -सा क्यों है ?

नादाँ धड़कन पूछ रही है ,
पहला प्यार ख़ुदा-सा क्यों है ?

अनजाना -सा चेहरा है पर ,
उसका बोल दुआ -सा क्यों है ?

जिसने कल चाहा था मुझको ,
वो हमराज़ जुदा -सा क्यों है ?

जो कल था परछाई जैसा ,
वो ही आज ख़फ़ा -सा क्यों है?        

Friday, October 11

किरची -किरची होकर टूटे -फूटे लोग मिले।
सांसों से भी जैसे रूठे -रूठे लोग मिले।।

धन -दौलत को क़द माना तो अंबर जैसे हैं ,   
दिल को  क़द माना तो छोटे -छोटे लोग मिले।।

मुस्कानों की बातें बीते कल का  ख़्वाब हुईं  ,
बस्ती -बस्ती ढूँढा रोते-धोते लोग मिले  ।।

सच्चाई का दावा झूठा , झूठी दुनिया में ,
धड़कन बोलीं -  जब -जब झूठे -झूठे लोग  मिले ।।

सुनकर भी कब सुन पाते हैं , जां  जो प्यारी है ,
डर है कैसा  डर से गूंगे -बहरे  लोग  मिले ।।

बारूदों की गंध लिए चलती है तेज़ हवा ,
इस मौसम में सारे सहमे -सहमे लोग मिले ।।   

Wednesday, October 9

दिखाई देगी जब जन्नत बुजुर्गों की दुआओं में।
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

बड़ों की बात पंचामृत
औ' इनका मन है गंगाजल
बड़ी क़िस्मत से मिलता है 
बड़ों के प्रेम का आँचल

इनको पास में रखिए,रहेंगे आप छाँव में।
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

चलो माता -पिता को
तुलसी -पीपल की तरहा मानें 
उन्हीं को देवगृह मानें  
उन्हीं को देवता मानें  
   
बनेगा घर तभी पावन ,महक होगी दिशाओं में।  
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 
 
बस ऎसे ही घरों में 
जन्नतें डेरा जमाएंगी 
वो सरगम छेड़कर ख़ुशियों के 
मीठे गीत गाएंगी 

 बड़े हैं बरगदों जैसे ,बसी जन्नत है पांवों में।  
हवाएं लोरियां बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में । 

Monday, October 7

हाल दुनिया का बहुत खस्ता मिलेगा।
दूध से पानी कहाँ सस्ता मिलेगा। ।

ढूँढने निकलोगे बचपन को जहाँ भी ,
पीठ पर भारी लदा बस्ता मिलेगा। ।  

जल्दबाज़ी से मिलेगा क्या बताओ ,
जो मिलेगा यार आहिस्ता मिलेगा । ।

छोड़ दॊगे जब सहारा मांगना तुम ,
देख लेना उस  घड़ी रस्ता मिलेगा । ।

उंगलियों में जो चुभन सहता रहेगा ,
वक़्त से उसको ही गुलदस्ता मिलेगा। ।   
              

Saturday, October 5

तुम बिन जो दुनिया क़िस्मत  की मारी लगती है।
तुमसे मिलकर वो जन्नत -सी प्यारी लगती है । ।

मिलकर लम्हा -लम्हा जी लो ,आँसू ठीक नहीं ,
ऐसा करने से चाहत को गारी लगती है  । ।

तुम आने की बात कहो , फिर कहकर न आओ ,
एक घड़ी भी उस पल कितनी भारी  लगती है  । ।

साँसों में ख़ुशबू भर देती ,धड़कन महकाती ,
ये  भोली मुस्कान हमें फुलवारी लगती है । । 

छप्पर अंधियारे में सीना तान  खड़ा रहता ,
कोठी पर दिन में भी पहरेदारी लगती है । ।

चुपके -चुपके देखें तुमको आँखों में भर लें , 
दिल की  ग़लती है ये लेकिन प्यारी लगती है । ।