Monday, December 11

ग़ज़ल


बिजली,पानी सबकी क़िल्लत, राजा जी।
आम आदमी की है ज़िल्लत, राजा जी।।

पास चुनावी घड़ियाँ आईं इसीलिए,
दिखते सबकी करते ख़िदमत, राजा जी।।

शुरू निवाले से हो मंडी में बिकती,
कितनी सस्ती हाय है अस्मत, राजा जी।।

कब बैठेगा ऊँट सही करवट बोलें,
कब तक सहनी होगी दिक़्क़त, राजा जी।।

बाँटे जाएँ नोट तो न कैसे आए,
आम सभा में भारी ख़लक़त, राजा जी।।

पैर पसारे 'झूठ' करे गुड़गुड़ हुक्का,
'सच' बेचारा करे मशक़्क़त, राजा जी।।

यहाँ तो तन की चादर छोटी पड़ती है,
कैसी दोज़ख़, कैसी जन्नत, राजा जी।।
-डॉ. विनोद 'प्रसून'

Tuesday, November 14

बाल दिवस पर देश के बच्चों के नाम.......

बाल दिवस है प्यारे बच्चो, तुम्हें बधाई मन से।
भरकर रखना अपनी दुनिया, निश्छल अपनेपन से।।

सदा खिलो तुम पुष्पों जैसा, नभ जैसा यश फैले।
पंथ कठिन है, चलो सँभलकर, भाव न होवें मैले।।

क्या अच्छा है और बुरा क्या इसका ज्ञान तुम्हें हो।
अच्छे और बुरे स्पर्शों की पहचान तुम्हें हो।।

अच्छे और बुरे लोगों का अंतर तुम्हें पता हो।
करे परेशाँ तुमको कोई, झट यह बात बता दो।।

कमरे औ' मोबाइल तक यह बचपन सिमट न जाए।
बालसुलभ ले बातें मन में, हर बच्चा मुस्काए।।

आभासी दुनिया है झूठी, असली दुनिया जानो।
लंबी फ़्रैंड लिस्ट से पहले, अपना घर पहचानो।।

उचित हो जितना, उतना ही बस फ़ोन उठाया जाए।
वक़्त बचे जो बाक़ी उसको नहीं गँवाया जाए।।

ध्यान लक्ष्य पर रखकर नित आगे बढ़ते जाओगे।
ऐसा करके जीवन में तुम कभी न पछताओगे।।

तुमपर है विश्वास दी गई सीख सदा मानोगे।
बदले-बदले युग में अपना बचपन पहचानोगे।।
                              -डॉ. विनोद 'प्रसून'

Tuesday, June 6

                          गीत
दिखाई देगी जब जन्नत बुज़ुर्गों की दुआओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।

बड़ों की बात पंचामृत औ' इनका मन है गंगाजल
बड़ी क़िस्मत से मिलता है बड़ों के प्रेम का आँचल
इनको पास में रखिए रहेंगे आप छाँवों में।।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।

चलो माता-पिता को तुलसी-पीपल की तरहा मानें
इन्हीं को देवगृह मानें , इन्हीं को देवता मानें
बड़े हैं बरगदों जैसे बसी जन्नत है पाँवों में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।

बस ऐसे ही घरों में जन्नतें डेरा जमाएँगी
वो सरगम छेड़कर ख़ुशियों के मीठे गीत गाएँगी
बनेगा घर तभी पावन महक होगी दिशाओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
                            डॉ. विनोद 'प्रसून'

Wednesday, May 10


मेरे उसके बीच जो भी कुछ रहा सच्चा रहा।
सच कहूँ तो दोस्ती के वास्ते अच्छा रहा।।

था भरोसे से जिसे जोड़ा गया दिल के लिए, 
वो मुहब्बत का दिली रिश्ता बड़ा पक्का रहा।।

हाँ, उसूलों में जिया मैं इसलिए ए दोस्तो,
कोठियों के बीच मेरा ही मकाँ कच्चा रहा।।

तुम भुला सकते हो भूलो हम भुलाएँ किस तरहा,
एक तोहफ़ा संदली जो रूह पे रक्खा रहा।।

उम्र ने खींचे हैं चेहरे पे लकीरों के निशाँ,
मैं मगर माँ के लिए तो आज भी बच्चा रहा।।
                       डॉ. विनोद 'प्रसून'

Friday, May 5


हैवान निर्भया के गर रह गए जो ज़िंदा।
तड़पेगा देश जैसे ,घायल हुआ परिंदा ॥

उस रात दरिंदों ने ,
मासूमियत को लूटा
अपनी हवस से अस्मत
औ' रूह को खरोंचा

उसकी तड़प पे वहशी ,
ख़ुश होके नाचते थे
हैवानियत से रूह को ,
टुकड़ों में बाँटते थे

तड़पी  बहुत वो लेकिन पिघला न इक दरिंदा ॥
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

माता -पिता की हसरत ,
परवान चढ़ानी थी
मंज़िल की तरफ़ कल -कल ,
बहता हुआ पानी थी

पंखों से आसमाँ को वो ,
नापना चाहती थी
वो तेज़ हवाओं का ,
रुख़ मोड़ना चाहती थी

अनजान थी यूँ वहशी फाँसेंगे, फेंक फंदा ।
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥
              डॉविनोद 'प्रसून'   

Saturday, April 29


श्रम के साथ हमें करनी है, एक नवल युग की तैयारी

श्रम हर अँधियारा हर लेगाबनकर भोरकिरण उजियारी
श्रम के साथ हमें करनी है,एक नवल युग की तैयारी ।।
चट्टानों पर गढ़े कहानी
श्रम पत्थर को करता पानी
श्रम मन में विश्वास जगाता
श्रम बदहाली दूर भगाता
गाँठ बाँधकर याद रखो यह, श्रम से चलती दुनिया सारी
श्रम के साथ हमें करनी है, एक नवल युग की तैयारी ।।
श्रम से भू पर स्वर्ग उतरता
श्रम से बैठा भाग्य सँवरता
श्रम लिखता इतिहास निराला
श्रम खोले उन्नति का ताला
श्रम से हाथ मिलाकर देखो , फिर देखो इसकी दिलदारी
श्रम के साथ हमें करनी है , एक नवल युग की तैयारी ।।
श्रम पूजा है, श्रम वंदन है
श्रम रोली है, श्रम चंदन है
श्रम माटी की सौंधी ख़ुशबू
श्रम खिलतामुस्काता जादू
श्रम की महिमा नित खिलती है, बनकर जीवन की फुलवारी
श्रम के साथ हमें करनी है, एक नवल युग की तैयारी ।।

                                         - डॉ. विनोदप्रसून