मेरे उसके बीच जो भी कुछ रहा सच्चा रहा।
सच कहूँ तो दोस्ती के वास्ते अच्छा रहा।।
था भरोसे से जिसे जोड़ा गया दिल के लिए,
वो मुहब्बत का दिली रिश्ता बड़ा पक्का रहा।।
हाँ, उसूलों में जिया मैं इसलिए ए दोस्तो,
कोठियों के बीच मेरा ही मकाँ कच्चा रहा।।
तुम भुला सकते हो भूलो हम भुलाएँ किस तरहा,
एक तोहफ़ा संदली जो रूह पे रक्खा रहा।।
उम्र ने खींचे हैं चेहरे पे लकीरों के निशाँ,
मैं मगर माँ के लिए तो आज भी बच्चा रहा।।
डॉ. विनोद 'प्रसून'
No comments:
Post a Comment