गीत
दिखाई देगी जब जन्नत बुज़ुर्गों की दुआओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
बड़ों की बात पंचामृत औ' इनका मन है गंगाजल
बड़ी क़िस्मत से मिलता है बड़ों के प्रेम का आँचल
इनको पास में रखिए रहेंगे आप छाँवों में।।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
चलो माता-पिता को तुलसी-पीपल की तरहा मानें
इन्हीं को देवगृह मानें , इन्हीं को देवता मानें
बड़े हैं बरगदों जैसे बसी जन्नत है पाँवों में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
बस ऐसे ही घरों में जन्नतें डेरा जमाएँगी
वो सरगम छेड़कर ख़ुशियों के मीठे गीत गाएँगी
बनेगा घर तभी पावन महक होगी दिशाओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
डॉ. विनोद 'प्रसून'
दिखाई देगी जब जन्नत बुज़ुर्गों की दुआओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
बड़ों की बात पंचामृत औ' इनका मन है गंगाजल
बड़ी क़िस्मत से मिलता है बड़ों के प्रेम का आँचल
इनको पास में रखिए रहेंगे आप छाँवों में।।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
चलो माता-पिता को तुलसी-पीपल की तरहा मानें
इन्हीं को देवगृह मानें , इन्हीं को देवता मानें
बड़े हैं बरगदों जैसे बसी जन्नत है पाँवों में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
बस ऐसे ही घरों में जन्नतें डेरा जमाएँगी
वो सरगम छेड़कर ख़ुशियों के मीठे गीत गाएँगी
बनेगा घर तभी पावन महक होगी दिशाओं में।
हवाएँ लोरियाँ बनकर बहेंगी इन फ़िज़ाओं में।।
डॉ. विनोद 'प्रसून'
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