Saturday, January 24



केशों के झुरमुट में खोने की 'हाँ' थी कल इच्छा मेरी।
मन करता रहता था पल -पल चाहत के उपवन में फेरी।। 

मन में ले सपने चाहत के 'हाँ' मैंने चलना चाहा था।
एक पतंगा बन चाहत की ज्वाला में जलना चाहा था ।।

एक मृदुल चेहरे को लेकर मन रचता था मधुर कहानी।
जिसमें  मैं राजा होता था, फूलों -सी होती थी रानी ।।

उस चेहरे से ख़्वाब जुड़े थे , उस बिन रूह अधूरी थी ।
उसके देखे मिलती राहत , तरसाती  हर दूरी थी ।।

सच कहदूँ तो उस चेहरे बिन जीवन आधा लगता था।
बिन उसके पलकों पे जैसे ख़्वाब न कोई सजता था।।

पर जबसे सीमा पर आया मैं बनकर प्रहरी मतवाला।
सच -सच कहता हूँ भारत माँ हूँ मैं तेरा ही रखवाला ।।

 गर्वित हो अब माँ मैं ख़ुद को तेरा लाल कहा करता हूँ  ।
देशभक्ति की हाला पीकर अब मैं मस्त रहा करता हूँ।।

सपनों की दुनिया से हटकर मैंने जीना सीख लिया है।
तुझ पर मर मिटने का माते अब मैंने संकल्प किया है ।।

(अपने एक सैनिक  मित्र पर आधारित सच्ची  कविता , जिसे सभी सैनिक भाइयों को समर्पित कर रहा हूँ। )



    

Tuesday, January 20


लोहे -पत्थर की बस्ती  में ,फूलों -से जज़्बात कहाँ।
इंसाँ हैं कहलाने भर को ,इंसानों -सी बात कहाँ।।  

वक़्त के साँचे में ढल -ढलकर बदल गई दुनिया सारी ,
अब फूलों-से मुस्काते दिन ,फुलवारी -सी रात  कहाँ।।

खेले चाहे लाख टके के खेल-खिलौनों से  बचपन ,
पर  इनमें माँ की लोरी की मीठी -सी सौगात कहाँ।।  

साँसों -की -साँसों से दूरी ,धड़कन का धड़कन से बैर ,
नाते हों संदल -संदल- से ऐसे अब हालात कहाँ।।  

ठोकर खाने का मतलब है अब औंधे मुँह गिर जाना,
बन जाते थे एक सहारा वो मतवाले हाथ कहाँ।।  

ख़ामोशी करती थी दिल से ,प्यार भरे लफ़्ज़ों में बात ,
दिल से ख़ामोशी सुन लें जो अब ऐसे लम्हात कहाँ।।  

घर के अंदर बैठ अकेला बचपन खेल रहा क्या खेल ,
अब टोली संग गुड्डे -गुड़िया की रचती बारात कहाँ।।
   

Saturday, January 17


ख़ूबसूरत तेरा मुस्कुराना लगे।
ये मेरी आरज़ू का ठिकाना लगे ॥

तू जो शर्माए तो एक ग़ज़ल -सी लगे ,
कुछ कहे बुलबुलों का तराना लगे ॥

तोड़ने के लिए एक पल है बहुत ,
रिश्ता गर जोड़िए तो ज़माना लगे ॥

तेरा हर इक बहाना मुझे सच लगे ,
मेरा सच भी तुझे इक बहाना लगे ॥

गर पढूँगा तो साँसें महक जाएँगी ,
तेरा ख़त ख़ुशबुओं का ख़ज़ाना लगे ॥ 

Friday, January 2


नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।
नई उमंगें , ख़ुशियाँ जी भर, आँगन -आँगन बिखराना।।
             
                   नहीं ईर्ष्या ,  नहीं द्वेष हो  ,
                             ना कटुता हो  ,  ना  नफ़रत
                   इंसां में इंसान फ़क़त हो ,
                              न हो शैतां -सी फ़ितरत
इस दुनिया के हर इंसां को बात यही तुम समझाना। 
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।
           
              अच्छी सेहत ,सोच हो अच्छी ,
                           बोल हों अच्छे , बातें अच्छी
              अच्छे पल-पल , अच्छी घड़ियाँ ,
                           अच्छे दिन हों ,रातें अच्छी
यह सारा संसार हो अच्छा , सबकुछ अच्छा कर जाना।
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।
                   
                      मन दूजे का दुख पहचाने
                                     दुखिया को संबल दे दे
                     मुश्किल में जिसको भी देखे ,
                                    हर मुश्किल का हल दे दे
हर इंसां के मन में ऐसी सोच सदा को भर जाना।
नवल वर्ष के नव प्रभात में नूतन किरणो, मुस्काना।।