Sunday, December 7


न होता था कभी जब फ़ोन काग़ज़ का सहारा था।
कभी हमने भी दिल का हाल काग़ज़ पे उतारा था ॥

खिले फूलों की तरहा वो हमें महसूस होता है ,
जो लम्हा प्यार में हमने कभी संग - संग गुज़ारा था ॥

अधूरी थी ग़ज़ल उसका तरन्नुम भी अधूरा था,
न जब तक ज़िंदगी को यार लफ़्ज़ों में उतारा था ॥

भले अब नाम लेकर बोलने का है चलन फिर भी ,
हमें है याद जब तुमने अजी कहकर पुकारा था ॥

लिए नफ़रत गुजारें ज़िंदगी वो जान लें इतना ,
जहाँ हारा हमेशा प्यार के बोलों से हारा था ॥

इसे दीवानगी की हद कहें या प्यार का जादू ,
हमारा दिल तुम्हारा था , तुम्हारा दिल हमारा था ॥ 

Sunday, September 14


दर्द को मिलता नहीं हमदर्द , कैसा वक़्त है।
आँच रिश्तों की हुई है सर्द , कैसा वक़्त है।।

वक़्त के साये में पलकर हो गए इस्पात हम ,
अब कहाँ पुरसा कहाँ का दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

लहलहाकर जो दिलों को  जोड़ते थे कल कभी,
प्यार के पत्ते हुए वो ज़र्द ,कैसा वक़्त है।।

कार भी है क़र्ज़ की औ' क़र्ज़  का ही है मकाँ ,
बन गई है ज़िंदगी इक दर्द ,  कैसा वक़्त है।।

चीख़ कानों में पड़ी है और सब ख़ामोश हैं ,
सब शिखंडी सबके सब नामर्द , कैसा वक़्त है।।

Friday, September 5



भारत की पावन वसुधा पर ,
गुरु पद पूजित और महान।
वेदों में भी किया गया इस ,
पावन पद का बड़ा बखान ॥

देवों  से भी पहले जिसका ,
नाम उचारा  जाता है।
जो सच्चा पथदर्शन देकर ,
मंज़िल तक पहुँचाता है ॥

सच्चा साथी और हितैषी ,
बनकर यह संग रहता है।
ज्ञान -सुरभि बनकर साँसों में ,
जो सदियों तक बहता है ॥

गुरु - शिष्य का यह शुभ नाता ,
सोचें पावन है कितना ,
हिमगिरि के शिखरों से निकले ,
गंगा माँ के जल जितना ॥

इस नाते की मर्यादा को ,
निभा सकें हम कुछ ऐसे।
गुरुवर रामकृष्ण बन जाएँ ,
शिष्य विवेकानंद जैसे ॥

अगर स्वार्थमय ,अंधे युग में ,
बस इतना हो जाए जो।
वही पुराना , नातों में फिर ,
अपनापन आ जाए जो ॥

हर उद्देश्य सफल होगा तब ,
हर मंज़िल मिल जाएगी।
नातों की मुरझाई कलिका ,
वह फिर से खिल जाएगी ॥

गुरु - शिष्य का निर्मल नाता ,
क्षण भर भी न खंडित हो।
भारत क्या सारे जग में यह ,
पूजित , महिमामंडित हो ॥

Sunday, August 24


वो पीड़ा में भी मुस्काता रहता है।
जाने कैसे लुत्फ़ उठाता रहता है। ।

बिटिया की शादी में थोड़ा क़र्ज़ लिया ,
बेचारा अब ब्याज़ चुकाता रहता है। ।

हिम्मत गर हारोगे हार मिलेगी वरना ,
तूफ़ाँ तो आ-आकर जाता रहता है। ।

मुफ़लिस के घर सब्ज़ी कब महँगाई में ,
चटनी से वो रोटी खाता रहता है। ।

उसकी अर्ज़ी पर हफ़्तों से धूल जमी है,
वो बिन पैसे दफ़्तर आता रहता है। ।



   

Saturday, February 22


हिम्मत रखना ग़म का क्या है।
हारे -हारे मन का  क्या है। ।

तुम कुछ सोचो , मैं कुछ चाहूँ ,
फिर मतलब इस हम का  क्या है। । 

फूलों की मुस्कान अटल पर ,
फूट चुके उस बम का क्या है। ।

नन्हा दीपक जल कहता है ,
गहरे छाए तम का क्या है। ।

 सच की ताक़त सच्ची ताक़त ,
बाक़ी के दमख़म का क्या है। ।

  
फ़ाइल में हर पेट भरा है ,
भूखे बेदम दम का क्या है। । 
  

 

 
 

Tuesday, January 21


चाहत  के मौसम उजियाले , याद बहुत आए।
दिल ने जो भी दर्द सँभाले ,  याद बहुत आए। ।

वक़्त हमें ले आया तुमसे दूर बहुत लेकिन ,
मिलकर जो भी सपने पाले ,याद बहुत आए। ।

क़िस्मत चाहती तो हम दोनों एक हुए होते ,
पर क़िस्मत ने बदले पाले ,याद बहुत आए। ।

अब जब हल्की-सी गर्मी में बेचैनी पाई ,
दादा के पाँवों के छाले ,याद बहुत आए। ।

दिन में पहरेदारी लेती जब देखी कोठी ,
घर जो देखे थे बिन ताले ,याद बहुत आए। ।

स्वीमिंग से स्किन इंफैक्शन की जब बात सुनी ,
उस पल वो बरसाती नाले,याद बहुत आए। ।