Sunday, June 7

हमारी हिम्मतों का जीत से इक वास्ता-सा है

गीत
हमारी हिम्मतों का जीत से इक वास्ता-सा है

बँधी है आज लेकिन कल बहेगी फिर हवाओं-सी,
लहर-सी ज़िंदगी का यह पुराना *ज़ाब्ता-सा है।।
बिखरते पल सिमेटो, हौसलों का हाथ बस थामो,
कि इन हालात के आगे मुकम्मल रास्ता-सा है।।

भले हों ये बँधे से पल मगर कल याद आएँगे।
मिले हैं इन दिनों ख़ुद से ये कैसे भूल पाएँगे।
मिले घर-भर से हम जीभर,मिला घर ख़ूब जी भरके,
ये क़िस्से भी सुकूँ देंगे, जो सोचेंगे-सुनाएँगे।।
सिखाया वक़्त ने हमको यक़ीनन फ़लसफ़ा ऐसा,
कि जिसमें ज़िंदगानी का *हक़ीक़ी रास्ता- सा है।।

मिटेंगे फिर अँधेरे, फिर सवेरा रूबरू होगा,
नज़ारे फिर जवाँ होंगे, यक़ीं यह हूबहू होगा
अभी कुछ इम्तिहाँ बाक़ी है, यह भी बीत जाएगा
भले ही वक़्त गूँगा आज हो, कल गीत गाएगा
भले ही जीत मीलों दूर दिखती हो, दिखाई दे,
हमारी हिम्मतों का जीत से इक वास्ता-सा है।।

कि अर्ज़ी डाल दी जज़्बात ने मंज़ूर वो होगी
अभी छाई हुई है जो उदासी, दूर वो होगी
कि कल फिर ख़्वाब महकेंगे, फ़िज़ाएँ मुस्कुराएँगी
*कफ़स से दूर साँसें बन परिंदे चहचहाएँगी
कि मिलकर मुस्कुराने के फ़साने फिर वही होंगे,
हमारा ज़िंदगी से ख़ूब गहरा *राब्ता-सा है।।
डॉ. विनोद ‘प्रसून’
(ज़ाब्ता-दस्तूर/नियम, हक़ीक़ी- असली/ सच्चा, कफ़स- क़ैद,  राब्ता- रिश्ता, संपर्क)

2 comments:

  1. प्रणाम सर!
    बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है इस गीत को आपने.... मैंने भी इसे गुनगुनाया आनन्दानुभूति हुई।
    आज के परिदृश्य को समेटती सुंदर गीत!

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