Wednesday, May 10


मेरे उसके बीच जो भी कुछ रहा सच्चा रहा।
सच कहूँ तो दोस्ती के वास्ते अच्छा रहा।।

था भरोसे से जिसे जोड़ा गया दिल के लिए, 
वो मुहब्बत का दिली रिश्ता बड़ा पक्का रहा।।

हाँ, उसूलों में जिया मैं इसलिए ए दोस्तो,
कोठियों के बीच मेरा ही मकाँ कच्चा रहा।।

तुम भुला सकते हो भूलो हम भुलाएँ किस तरहा,
एक तोहफ़ा संदली जो रूह पे रक्खा रहा।।

उम्र ने खींचे हैं चेहरे पे लकीरों के निशाँ,
मैं मगर माँ के लिए तो आज भी बच्चा रहा।।
                       डॉ. विनोद 'प्रसून'

Friday, May 5


हैवान निर्भया के गर रह गए जो ज़िंदा।
तड़पेगा देश जैसे ,घायल हुआ परिंदा ॥

उस रात दरिंदों ने ,
मासूमियत को लूटा
अपनी हवस से अस्मत
औ' रूह को खरोंचा

उसकी तड़प पे वहशी ,
ख़ुश होके नाचते थे
हैवानियत से रूह को ,
टुकड़ों में बाँटते थे

तड़पी  बहुत वो लेकिन पिघला न इक दरिंदा ॥
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥

माता -पिता की हसरत ,
परवान चढ़ानी थी
मंज़िल की तरफ़ कल -कल ,
बहता हुआ पानी थी

पंखों से आसमाँ को वो ,
नापना चाहती थी
वो तेज़ हवाओं का ,
रुख़ मोड़ना चाहती थी

अनजान थी यूँ वहशी फाँसेंगे, फेंक फंदा ।
हैवान निर्भया के अब रह न जाएँ ज़िंदा ॥
              डॉविनोद 'प्रसून'