(अपने एक सैनिक मित्र पर आधारित सच्ची कविता , जिसे सभी सैनिक भाइयों को समर्पित कर रहा हूँ। )
केशों के झुरमुट में खोने की 'हाँ' थी कल इच्छा मेरी।
मन करना चाहता था पल -पल चाहत के उपवन में फेरी।।
आँखों में ले सपन प्यार के 'हाँ' मैंने चलना चाहा था।
एक पतंगा बन चाहत की ज्वाला में जलना चाहा था ।।
एक मृदुल चेहरे को लेकर मन रचता था मधुर कहानी।
जिसमे मैं राजा होता था, फूलों -सी होती थी रानी ।।
उस चेहरे से ख़्वाब जुड़े थे , उस बिन रूह अधूरी थी ।
उसके देखे मिलती राहत , तरसाती हर दूरी थी ।।
सच कहदूँ तो उस चेहरे बिन जीवन आधा लगता था।
बिन उसके पलकों पे जैसे ख़्वाब न कोई सजता था।।
पर जबसे सीमा पर आया मैं बनकर प्रहरी मतवाला।
सच -सच कहता हूँ भारत माँ हूँ मैं तेरा ही रखवाला ।।
देशभक्ति की हाला पीकर अब मैं मस्त रहा करता हूँ।
बड़े गर्व से माँ मैं ख़ुद को तेरा लाल कहा करता हूँ ।।
सपनों की दुनिया से हटकर मैंने जीना सीख लिया है।
तुझ पर मर मिटने का माते अब मैंने संकल्प किया है ।।