आतंकी बस आतंकी
हैं, इनका मज़हब
है आतंक।
मानवता नित झेल
रही है, इन
साँपों का निर्मम
दंश।।
आतंकी फन फैल
रहा जो , उसे
कुचलना ही होगा।
इकजुट होकर सारे
जग को इन्हें
मसलना ही होगा।।
निर्मम होकर नर
-पिशाच ये खूं
की नदी बहाते
हैं।
ऐसा क्रूर
कृत्य करने में
तिलभर कब पछताते
हैं।।
निर्दोषों के शव
बिछते जब ज़ालिम
ख़ुशी मनाते हैं।
ख़ून बहे
जब मानवता का
फूले नहीं समाते
हैं।।
इनकी काली
करतूतों से सहमी हर मुस्कान दिखी।
मुंबई, दिल्ली कभी
करांची बेहद लहूलुहान
दिखीं ।।
यू.एस.,
लंदन,रूस,फ़्रांस
के हमलों की
भी आह सुनें।
मन को
उद्वेलित कर देगी
,सिसकी और कराह
सुनें।।
दुनिया भर में
इन दुष्टों ने
कितना नरसंहार किया।
क्रूर सनक के
कारण कितने निर्दोषों
को मार दिया।।
नरक बना
डाली है धरती
इन पाजी हत्यारों
ने।
ज़ख़्म दिए
हैं मानवता को
,इन निर्मम मक्कारों
ने।।
सभी राष्ट्राध्यक्ष
सुनें अब इनसे
बढ़कर टकराएँ।
तहस-नहस
कर डालें इनको
, तिनका-तिनका बिखराएँ।।.
इनके शिविर
ध्वस्त होंगे जब इनको
मारा जाएगा।
उस दिन
पीड़ित मानवता का,
दिल हल्का हो
जाएगा।।
ख़त्म हुए
गर नर- पिशाच
तो मानवता मुस्काएगी।
सुकूँ मिलेगा तभी
ज़मीं को, जन्नत-सी बन
जाएगी।।
डॉ. विनोद 'प्रसून'