गणतंत्र दिवस पर कविता
इस गणतंत्र कह रहा देश कुछ…….
इस गणतंत्र कह रहा देश कुछ, सुनिए कान लगाकर।
मन को गंगाजल कर लें हम, कटुता-कलुष मिटाकर।।
सिमट रही जो सामाजिकता, उसको फिर अपनाएँ।
वक़्त निकालें इक-दूजे से, मिलने-जुलने जाएँ।।
लैपटॉप औ’ मोबाइल का, थोड़ा समय घटाकर।
ख़ुद को थोड़ा वक़्त ज़रा दें, ख़ुद से हाथ मिलाकर।।
अबे-तबे वाली बोली को, मुख में न आने दें।
अच्छी बातें दिल के घर से, नहीं ज़रा जाने दें।।
जाति-धर्म, भाषा-बोली पर, तल्ख़ कभी न बोलें।
मानवता के बनें पुजारी, मन में मिश्री घोलें।।
स्टीयरिंग जब थामें, मन को, यह समझाया जाए।
रोडरेज में नहीं सड़क पर, ख़ून बहाया जाए।।
गति सीमा का ध्यान रखें हम, नियम सभी अपनाएँ।
‘चलें सुरक्षित, रहें सुरक्षित’ फिर अच्छे कहलाएँ।।
इस युग में सेहत अच्छी हो, योग ज़रा अपनाएँ।
जंकफ़ूड से तौबा करके, साफ़-शुद्ध ही खाएँ।।
मतदाता बन गए अगर तो मत-महत्व को जानें।
इस दिन को ना केवल हम छुट्टी की तरहा मानें।।
संविधान को लोकतंत्र की गीता मानें मन से।
रहें समर्पित मातृभूमि पर, तन से, मन से, धन से।।
याद शहीदों को रक्खें हम उनको वंदन कर लें।
ऐसा करके देशभक्ति से, मन को चंदन कर लें।।
यह चंदन जब भावों को भीना-सा महकाएगा।
अपना यह गणतंत्र उस घड़ी, खिल-खिल मुस्काएगा।।
डॉ. विनोद ‘प्रसून’
गणतंत्र दिवस की असीम मंगलकामनाएँ!!🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
इस गणतंत्र कह रहा देश कुछ…….
इस गणतंत्र कह रहा देश कुछ, सुनिए कान लगाकर।
मन को गंगाजल कर लें हम, कटुता-कलुष मिटाकर।।
सिमट रही जो सामाजिकता, उसको फिर अपनाएँ।
वक़्त निकालें इक-दूजे से, मिलने-जुलने जाएँ।।
लैपटॉप औ’ मोबाइल का, थोड़ा समय घटाकर।
ख़ुद को थोड़ा वक़्त ज़रा दें, ख़ुद से हाथ मिलाकर।।
अबे-तबे वाली बोली को, मुख में न आने दें।
अच्छी बातें दिल के घर से, नहीं ज़रा जाने दें।।
जाति-धर्म, भाषा-बोली पर, तल्ख़ कभी न बोलें।
मानवता के बनें पुजारी, मन में मिश्री घोलें।।
स्टीयरिंग जब थामें, मन को, यह समझाया जाए।
रोडरेज में नहीं सड़क पर, ख़ून बहाया जाए।।
गति सीमा का ध्यान रखें हम, नियम सभी अपनाएँ।
‘चलें सुरक्षित, रहें सुरक्षित’ फिर अच्छे कहलाएँ।।
इस युग में सेहत अच्छी हो, योग ज़रा अपनाएँ।
जंकफ़ूड से तौबा करके, साफ़-शुद्ध ही खाएँ।।
मतदाता बन गए अगर तो मत-महत्व को जानें।
इस दिन को ना केवल हम छुट्टी की तरहा मानें।।
संविधान को लोकतंत्र की गीता मानें मन से।
रहें समर्पित मातृभूमि पर, तन से, मन से, धन से।।
याद शहीदों को रक्खें हम उनको वंदन कर लें।
ऐसा करके देशभक्ति से, मन को चंदन कर लें।।
यह चंदन जब भावों को भीना-सा महकाएगा।
अपना यह गणतंत्र उस घड़ी, खिल-खिल मुस्काएगा।।
डॉ. विनोद ‘प्रसून’
गणतंत्र दिवस की असीम मंगलकामनाएँ!!🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳