Monday, December 11

ग़ज़ल


बिजली,पानी सबकी क़िल्लत, राजा जी।
आम आदमी की है ज़िल्लत, राजा जी।।

पास चुनावी घड़ियाँ आईं इसीलिए,
दिखते सबकी करते ख़िदमत, राजा जी।।

शुरू निवाले से हो मंडी में बिकती,
कितनी सस्ती हाय है अस्मत, राजा जी।।

कब बैठेगा ऊँट सही करवट बोलें,
कब तक सहनी होगी दिक़्क़त, राजा जी।।

बाँटे जाएँ नोट तो न कैसे आए,
आम सभा में भारी ख़लक़त, राजा जी।।

पैर पसारे 'झूठ' करे गुड़गुड़ हुक्का,
'सच' बेचारा करे मशक़्क़त, राजा जी।।

यहाँ तो तन की चादर छोटी पड़ती है,
कैसी दोज़ख़, कैसी जन्नत, राजा जी।।
-डॉ. विनोद 'प्रसून'