Tuesday, January 19


फ़सल :   किसान के कच्चेअधपके सपनों की लहलहाती आस

फ़सल नहीं है नेचर का ख़ूबसूरत नज़ारा भर

और नहीं है कवियों के लिए केवल

सुंदर, सटीक, मनमोहक उपमान

और ही पर्यटकों के लिए

थोड़ी रुचि या थोड़े उत्साह में,

कैमरों या मोबाइलों में क़ै कर लेने वाला

अप्रतिम, अद्वितीय दृश्य

यह तो किसान के कच्चेअधपके

सपनों की लहलहाती आस है

यह उसके हृदय की गहराइयों में

अंकुरित एक विश्वास है

यह विश्वास है ढही हुई दीवार की चिनाई का

यह विश्वास है अट्ठारह पार कर चुकी बेटी की सगाई का

यह विश्वास है बनिए की उधारी चुकाने का

यह विश्वास है घर भर के लिए एक जोड़ी ही सही नए परिधान बनाने का

इसी विश्वास की सलामती के लिए वह मूँद लेता है आँखें

दिन में जाने कितनी बार

जाने कितनी बार वह गगन की ओर देखकर

दुआएँ प्रेषित करना चाहता है ऊपर तक

भरोसे और आशंका की रस्साकसी में

जाने कितनी बार वह जाग जाता है नींद से

और नींद से जगा देना चाहता है उस परमात्मा को भी

जिसके बारे में उसने सुना है कि सभी कुछ उसके ही हाथ है

और इसीलिए जब फ़सल सौंधियाती है

असल में , किसान के सपने सौंधियाते हैं

और फ़सल घर जाने पर, सपने पक जाते हैं

                                     - डॉ. विनोदप्रसून